Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ कपिल की कथा सुनकर राजा जितशत्रु का हृदय पसीज उठा। उसने कहायुवक ! तुम्हारी करुण कथा सुनकर तो हमें भी दया आ रही है। फिर तुमने निःसंकोच सत्य बोला। इस पर भी हम प्रसन्न हैं। तुम्हें दो मासा सोना चाहिए था न? चलो, अब तुम जितना सोना चाहो माँग लो ! लक तृष्णा का जाल क्या माँगूँ, कितना कपिल, ऐसा अवसर बार-बार नहीं आयेगा। आज राजा प्रसन्न है तो इतना माँग ( माँगूँ ? ले कि फिर दुबारा माँगना ही न पड़े...... उसकी आशाओं को पंख लग गये। वह राजा ने कहाखड़ा खड़ा सोचता रहा Jain Education International | कपिल आश्चर्य के साथ देखने लगाहें ! यह क्या, दंड के | बदले पुरस्कार ! कहीं मेरा उपहास तो नहीं कर रहे हैं सब लोग? युवक ! तुम चुप क्यों हो? हमने कहा न ! तुम जो चाहो वह माँग लो, मिलेगा। 21 For Private & Personal Use Only नहीं, नहीं, सत्य के साथ कभी मजाक नहीं होता। अब तो मैं जो माँगूँगा वही मिलेगा...क्या माँगूँ? Sood महाराज ! मुझे सोचने के लिए ठीक है, सामने उद्यान है वहाँ बैठकर सोच लो। कुछ समय चाहिए। www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38