Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 5
________________ ~ तृष्णा का जाल " " -धीरे बालक कपिल जब सात वर्ष का पण्डित काश्यपनसमझायाला Samanar@kobatirth.org ने उसकी माता यशा से कहाँलामा नि (कर्त्तव्य से चूक रही हो ! देवी ! कपिल सात वर्ष पूर्ण कर नहीं स्वामी ! यह रहा है। अब इसे विद्याध्ययन के मेरा इकलौता आँखों लिए गुरुकुल भेजना होगा। A का तारा है। मैं इसे AAM अपने से दूर नहीं कैसे स्वामी? कर सकती। OU COULD AAA. जो माता-पिता बालक को पढ़ाते नहीं हैं वे उसके हित-चिन्तक नहीं होते। स्वामी ! आप राजपुरोहित हैं, अनेकों पण्डित, अध्यापक आपके प्रिय मित्र हैं। क्यों न हम कपिल को घर पर ही विद्याध्ययन कराएँ? काश्यप ने कहा- गरुकुल में बालक जीवन का जो सर्वांगीण विकास सम्भव है।वह घर पर पढ़ने से कभी नहीं हो सकता। वृक्ष जैसा वन के शान्त वातावरण में फलता-फूलता है वैसा घर के आँगन में कभी नहीं फल सकता। 200000 ION MOVAENDRA ARVICUT rseeocoo Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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