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कपिल ने अपने आने का कारण बताते हुए कहा
मेरे लिए आप ही आश्रय हैं। कृपाकर मुझे विद्याध्ययन कराइए। मैं सम्पूर्ण निष्ठा के साथ अध्ययन करूँगा।
महापण्डित इन्द्रदत्त कुछ देर सोचते रहे।
विप्रवर ! स्थान कमी के कारण कोई छात्र ज्ञान-लाभ से वंचित रहे तो उचित नहीं लगता। मेरे भवन के अतिथि कक्ष में यदि आप किसी योग्य छात्र को रखना चाहें तो सहर्ष मुझे सेवा का अवसर दें।
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तृष्णा का जाल
तभी नगर के श्रेष्ठी शालिभद्र महापण्डित इन्द्रदत्त से मिलने के लिए आये। | नमस्कार करके पूछाहाँ श्रेष्ठीवर, लगभग सौ विद्यार्थी अध्ययन हेतु आ रहे हैं। परन्तु स्थान का अभाव होने से अब अन्य विद्यार्थियों को कठिनाई रहती है।
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विप्रवर ! कैसा है आपका स्वास्थ्य? अध्यापन कार्य ठीक तो चल रहा है न? By M
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यह छात्र मेरे प्रिय मित्र राजपुरोहित काश्यप का पुत्र है। कौशाम्बी से अध्ययन हेतु आया है। अपने अतिथिकक्ष में इसकी उचित व्यवस्था कर सकते हैं।
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श्रेष्ठ शालिभद्र ने कपिल से कहा
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वटुक ! चलो मेरे यहाँ तुम्हें भोजन आवास की सब सुविधाएँ मिलेंगी।
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