Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 14
________________ तृष्णा का जाल श्रेष्ठी शालिभद्र कपिल को अपने घर पर ले आये। भवन व उद्यान के बाहर अतिथि-कक्ष बताते हुए कहा वटुक ! तुम यहाँ रहो और किसी भी वस्तु की जरूरत हो तो निःसंकोच माँग लेना। फिर अपने घर की दास-कन्या कपिला को बुलाकर कहा ठीक है स्वामी, आपकी आज्ञा का पूरा ध्यान रखूँगी। कपिला ! देखो यह छात्र हमारा मेहमान है। गुरुमित्र का पुत्र है। इसके भोजन आदि का समुचित ध्यान रखना। E Jain Education International VILL Y कपिल प्रातः स्नान आदि से निवृत्त होकर गुरुकुल में अध्ययन के लिए चला जाता। दुपहर के बाद आता। भोजन कर कुछ समय विश्राम कर पुनः गुरुकुल में चला जाता। गुरुकुल के नियमानुसार वह केवल एक ही समय भोजन करता। दिन-रात अध्ययन आदि में लगा रहता ।। But rays! ACANC कपिला ने तुरन्त ही कक्ष को साफ किया। छात्र कपिल का सामान एक तरफ रखकर कहामेरा नाम कपिला है। जब भी भोजन आदि की आवश्यकता हो आप मुझे पुकार लें। 12 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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