Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030 Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 8
________________ कपिल ने आश्चर्य के साथ पूछामाँ ! यह क्या? ये लोग तो खुशियों में गाते-बजाते जा रहे हैं और तू रो रही है ? कपिल माँ के आँसू पोंछता हुआ बोला कपिल ने आँखें फाड़कर पूछातो फिर यह सम्मान हमको क्यों नहीं मिला? मेरे पिता की राजपुरोहित की गद्दी मुझे क्यों नहीं मिली? Jain Education International बेटा ! मेरे तो अब रोने के ही दिन हैं। माँ ! पहेली मत बुझाओ, सच-सच बताओ क्या बात है? क्यों रो रही हो तुम? तृष्णा का जाल कपिल ने माँ ! ऐसी अशुभ बात मत बोल ! क्या दुःख है तुम्हें? इन लोगों ने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा? के मुँह पर हथेली रखी बेटा ! मेरे रोने का कारण ये लोग नहीं, तू है ? बेटा ! एक दिन इस ठाट-बाट से तुम्हारे पिताजी राजसभा में जाते थे। सैकड़ों लोग महापण्डित काश्यप की जय-जयकार करते चलते थे। यही > सम्मान, यही रुतबा तुम्हारे पिताजी का था। 6 For Private & Personal Use Only पुत्र ! क्योंकि तू पढ़ा-लिखा नहीं । राजपुरोहित को तो वेद, पुराण, ज्योतिष, गणित सभी का ज्ञान होना चाहिए न । www.jainelibrary.orgPage Navigation
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