Book Title: Trushna ka Jal Diwakar Chitrakatha 030
Author(s): Madankunvar, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 10
________________ तृष्णा का जाल यशा कपिल के भावुक चेहरे को उदास होकर देखती है। कपिल की आँखों में चमक आ गई। थोड़ी देर सोचकर यशा बोली 'बस माँ, वत्स ! महान् कर्म ही वत्स! श्रावस्ती के महापण्डित मैं तुम्हारे मनुष्य को महान् बनाता है। तेरा. इन्द्रदत्त तेरे पिताजी के घनिष्ट चरणों की शपथसंकल्प अवश्य सफल होगा। मित्र हैं। यदि वे चाहें तो तुझे खाकर कहता हूँ। वैसा ही पण्डित बना सकते हैं मैं विद्या पदूंगा, जैसे तेरे पिताजी थे। अवश्य पदूंगा। (OTA कपिल ने माँ के चरण स्पर्श किये और श्रावस्ती की ओर चल पड़ा। | कई दिनों के प्रवास के बाद थका-हारा कपिल श्रावस्ती पहुंचा। नगर | के बाहर एक सरोवर की पाल पर बैठकर हाथ-मुँह धोये और फिर आगे चलने की तैयारी करने लगा। तभी कुछ वटुक छात्र सरोवर पर नहाने के लिए आये। कपिल ने छात्र वटुकों से पूछा उन्हें कौन नहीं जानता? श्रावस्ती के बन्धु ! क्या आप गौरव हैं वे तो। हम महापण्डित इन्द्रदत्त उन्हीं के शिष्य हैं। को जानते हैं? अच्छा, तो कहाँ। तुम कौन हो? किसलिए आये रहते हैं वे? हो यहाँ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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