Book Title: Tirthankar Mahavira Part 1
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 12
________________ यह रही कि तीर्थंकरों का जन्म केवल क्षत्रिय (इक्ष्वाकु और हरिवंश) कुला में ही होता है । (कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, सूत्र १७, पत्र ६२) इसके विरुद्ध तीर्थंकर भगवान महावीर के समकालीन बुद्ध के अनुयायियों ने ब्राह्मण-वर्ग से समझौते का प्रयास किया। और, अपने बुद्ध के जन्म के लिए दो कुल बताये-क्षत्रिय और ब्राह्मण ! (जातकट्ठ कथा, पृष्ठ ३६) ___इस समझौते-वाद का फल यह हुआ कि यद्यपि शाक्य मुनि बुद्ध से पूर्व के बुद्धों को ब्राह्मण-ग्रन्थों में कोई महत्व नहीं मिला और बौद्ध-साहित्य ने भी राम, कृष्ण, आदि को कोई महत्त्व अपने ग्रंथों में नहीं दिया; पर बाद में ब्राह्मणों ने शाक्य मुनि को भी एक अवतार मान लिया। बाद में बुद्ध की गणना दशावतारों में हुई, अपनी इस उक्ति के प्रमाण में हम यहाँ कह दें कि महाभारत, शान्तिपर्व, ३४८-वें अध्याय में दशावतारों की जो सूची दी है, उसमें बुद्ध का नाम नहीं है। हंसः कूर्मश्च मत्स्यश्च प्रादुर्भावा द्विजोत्तम ॥५४॥ वराहो नरसिंहश्च वामनो राम एव च । रामो दाशरथिश्चैव सात्वतः कल्किरेव च ॥५५।। हम यहाँ प्रसंगवश यह बता दें कि ब्राह्मणों के सम्बन्ध में जैनियों की मान्यता क्या है ? त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र पर्व १, सर्ग ६ में आता है कि ब्राह्मणों की स्थापना तो प्रथम चक्रवर्ती भरत महाराज ने की। उसके पूर्व तो ब्राह्मण-वर्ण था ही नहीं। ___कथा है कि, जब भरत ने अपने छोटे भाइयों के पास आज्ञा-पालन के लिए दूत भेजा तो छोटे भाइयों को विचार हुआ कि राज्य तो मेरे पिता दे गये हैं फिर भरत की आज्ञा क्यों स्वीकार करें। वे इस सम्बन्ध में पिता से परामर्श करने अष्टापद गये। वहाँ ऋषभदेव ने उन्हें उपदेश किया और उनके १८ पुत्र वहीं साधु हो गये। महाराज भरत भी अपने पिता के पास गये और उन्होंने ५०० गाड़ियों पर पक्वान आदि मँगवाये । पर, ऋषभदेव ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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