Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 14
________________ और मौलिकता को ध्यान में रखते हुए संपादन के समय उस क्रम में कुछ परिवर्तन किया गया है। इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है ___ ढाळ प्रथम-इसमें ३९ पद्य हैं। इसकी रचना सं० १९११ ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में बुधवार के दिन हुई है। स्थान का उल्लेख नहीं है। इसमें मुनि भारमलजी (द्वितीयाचार्य) के सं० १९३२ मृगसर कृष्णा ७ के दिन उत्तराधिकार पत्र के रूप में लिखे गए नियुक्ति पत्र का अनुवाद है। साधु-साध्वियों के लिए सामूहिक रूप से लिखा गया स्वामीजी का यह प्रथम लिखित है। तत्कालीन सभी साधुओं की सहमति से इसे लिखा गया है। यह लिखित हमारे संगठन का प्रथम मौलिक संविधान है। इसके माध्यम से संयम साधना में बाधक तत्त्वों के निरसन की व्यवस्था, विनय-मूल धर्म की प्रतिष्ठा तथा सभी को न्याय मिल सके, ऐसे उपायों का दिग्दर्शन है। ___ ढाळ २-३१ गाथाओं वाली इस ढाळ की रचना सं० १९१४ कार्तिक क० ११ बीदासर में हई है। इसमें सभी साध्वियों के लिए सं०१/32ज्येष्ठ शक्ला के दिन किए गए लिखित का अनुवाद है। यह पारस्परिक व्यवहार में होने वाली त्रुटियों के निरसन के लिए अच्छे पथ-प्रदर्शन का सा काम करती है। ढाळ २-२३ गाथाओं वाली इस ढाळ की रचना सं० १९१४ फा. कृ. १३ बीदासर में हुई है। इसमें संवत् १८४१ चैत्र कृष्ण १३ के दिन साधुओं के लिये बनाए गये लिखित का अनुवाद है। इसमें दोषों के प्रतिकार के विभिन्न सूत्रों की ओर इंगित किया गया है। ढाळ ४.५-११और ३५ गाथाओं वाली इन दोनों ढाळों की रचना एक ही दिन में स. १९१४ फा. शुक्ला १ बीदासर में हुई है। इसमें सं० १८४५ जे. शुक्ला १ के दिन लिखे गए लिखित का अनुवाद है। संघ का कोई साधु अस्वस्थ या अचक्षु हो जाए, वैसी स्थिति में प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य हो जाता है कि वह उसकी अग्लान भाव से सेवा करे, उसका वैराग्य और समाधि बढ़े वैसा कार्य करे। उसे अक्षम और रुग्ण समझ कर १. ऋष भीखण सर्व साधां भणी, पूछी धर अहलाद। सर्व साधु साधवियां तणी, बांधी वर मरजाद (ढाल १, गाथा १६) २. तिण सूं ममत शिखादिक तणी, मिटावण तणों उपाय। चारित्र चोखो पाळण तणों, उपाय कियो सुखदाय।। विनय मूळ ए धर्म नै, न्याय मार्ग चालण रो उपाय।। (ढाल १, गा० १२,१३) ३. संवत् अठार चोतीस में, समणी नो सुखकार भिक्षु लिखत कियो भलो, निसुणो सह नर नार।। (ढाल०२। गा०१)

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