Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ नहीं है। सेवा एवं परिचर्या का दायित्व साधु-साध्वियां सहर्ष ग्रहण करते हैं। वृद्ध, अक्षम एवं रुग्ण साधु-साध्वियों के लिए स्वास्थ्य लाभ एवं सेवा का केन्द्र है जहां उनकी परिचर्या नियमित रूप से होती है। किसी भी सामाजिक व्यवस्था में रुग्ण एवं अक्षम व्यक्तियों के लिए इतनी सुचारु एवं व्यापक व्यवस्था मिलनी दुर्लभ ही होगी। इन सभी व्यवस्थाओं को जमाने में जयाचार्य की क्रान्तदर्शी मेधा का महान् योगदान है। आपने आचार्य श्री भिक्षु द्वारा निर्मित मर्यादाओं को व्यवहारिक रूप देने के लिए समय-समय पर अनेक आयामों को मूर्त रूप दिया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में मर्यादा और व्यवस्था से संबंधित आपकी ऐसी ही १० कृतियां संकलित की गई हैं। १. लिखतां री जोड़ २. गणपति सिखावण ३. शिक्षा री चौपी ४. उपदेश री चौपी ५. टहुका ६. मर्यादा मोच्छव री ढाळां ७. गण विशुद्धिकरण हाजरी ८. परंपरा री जोड़ ९. लघु रास १०. टाळोकरों री ढाळ। इन कृतियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है १. लिखता री जोड़ तेरापंथ के प्रथमाचार्य श्रीमद् भिक्षु स्वामी ने अपनी पैनी दृष्टि से संघ सुरक्षा के लिए समय-समय पर अनेक मर्यादाओं का निर्माण किया और संबंधित व्यक्तियों को सुनाकर उनकी मौखिक ही नहीं, लिखित सहमति भी प्राप्त की। इसलिए राजस्थानी भाषा में इन मर्यादाओं को ‘लिखित' नाम से अभिहित किया गया। श्रीमज्जयाचार्य ने उन लिखितों की सुरक्षा तथा वे संघ के सदस्यों की स्मृति में सहज रूप से रह सकें इस दृष्टि से उन्हें पद्य-बद्ध कर दिया। इस कृति में स्वामीजी के १० लिखितों का पद्यानुवाद है, जिसमें दो लिखित व्यक्तिगत हैं, एक मुनि अखेराम जी के लिए तथा दूसरा साध्वी फत्तूजी के लिए। शेष आठ में कई साध्वियों के लिए, कई साधुओं के लिए तथा कई साधुसाध्वियां दोनों के लिए हैं, जिन्हें १९ गीतिकाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं-इस ग्रन्थ में ढालों का क्रम लिखितों की रचना संवत् के क्रम से था। तदनुसार व्यक्तिगत लिखित पहले आते थे। पर लिखितों की सामूहिकता

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