________________ तत्त्वसार भावसंग्रहके अतिरिक्त अन्य किसी भी रचनामें देवसेनने अपने गुरुके नामका कोई उल्लेख नहीं किया है। भावसंग्रहकी अन्तिम गाथामें उन्होंने अपनेको श्री विमलसेन गणधरका शिष्य . कहा है / वह गाथा इस प्रकार है सिरिविमलसेणगणहरसिस्सो गामेण देवसेणो त्ति। अबुहजणबोहणत्थं तेणेयं विरइयं सुत्तं / / 701 // अन्य रचनाओंमें प्रकारान्तरसे गुरुके नामका संकेत अवश्य उपलब्ध होता है। यथाआराधनासारकी मंगल गाथामें 'विमलगुणसमिद्ध' पदसे, दर्शनसारमें 'विमलणाण' पदसे, नयचक्रमें 'विगयमल' और 'विमलणाणसंजुत्त' पदसे गुरुके 'विमलसेन' इस नामका आभास मिलता है। अतः ये सब ग्रन्थ एक ही देवसेन-रचित सिद्ध होते हैं। दर्शनसार और भावसंग्रह तो एक ही देवसेनके रचे हैं, यह बात दोनों ग्रन्थोंमें श्वेताम्बरमतकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें दी गई एक ही गाथाकी अक्षरशः समानतासे सिद्ध है। इस विषयको अन्य गाथाओंमें भी शब्द और अर्थगत बहुत अधिक समानता पाई जाती है।' अभी तक आ० देवसेनकी निम्नलिखित रचनाएँ प्रकाशमें आई हैं 1. भावसंग्रह-इसमें चौदह गुणस्थानोंके स्वरूपका विस्तृत वर्णन करनेके साथ उनमें पाये जानेवाले औपशमिक आदि भावोंका भी निरूपण किया गया है। इसमें सबसे अधिक गाथाओं द्वारा मिथ्यात्व गुणस्थानका वर्णन है / मिश्रगुणस्थानका 61 गाथाओंमें, अविरत सम्यक्त्व गुणस्थानका 91 गाथाओंमें, देशविरत गुणस्थानका 250 गाथाओंमें, प्रमत्तविरतगुणस्थानका 42 गाथाओंमें और अयोगिकेवली गुणस्थानका 22 गाथाओंमें वर्णन किया गया है। शेष उपशम-क्षपक श्रेणीगत गुणस्थानोंका और सयोगिकेवली गुणस्थानका 64 गाथाओंमें वर्णन है / मंगलाचरण, उत्थानिका एवं अन्तिम उपसंहार गाथाओंको मिलाकर पूरे ग्रन्थमें 701 गाथाएँ हैं। इनमें गुणस्थानके स्वरूप-वर्णन एवं अन्य मतोंकी उत्पत्ति-निरूपण करने वाली गाथाएँ प्रायः प्राचीन ग्रन्थोंसे संकलित की गई हैं, अतः इसका भावसंग्रह यह नाम सार्थक है / आ० देवसेनकी रचनाओंमें यह सबसे बड़ी रचना है। 2. आराषनासार-इसमें 115. गाथाओंके द्वारा दर्शनाराधना, ज्ञानाराधना, चारित्राराधना और तपाराधना इन चार आराधनाओंका वर्णन किया गया है। भगवती आराधना नामसे प्रसिद्ध आ० शिवार्यकी विस्तृत मूलाराधनाका सार खींचकर इसकी रचना की गई है। 3. लघुचक्रनय-इसमें 87 गाथाओंके द्वारा नयोंका स्वरूप, उनकी उपयोगिता और भेदप्रभेदोंका वर्णन किया गया है। ____4. दर्शनसार-इसमें 51 गाथाओंके द्वारा श्वेताम्बरमत, बौद्धमत, द्राविड़संघ यापनीयसंघ, काष्ठासंघ, माथुरसंघ और भिल्लकसंघकी उत्पत्तिका वर्णनकर उनकी समीक्षा की गई है। 5. तत्त्वसार-इस प्रस्तुत ग्रन्थमें 74 गाथाओंके द्वारा जीवोंके सबसे अधिक उपादेय शुद्ध आत्मतत्त्वकी उपलब्धि कैसे होती है, इसका वर्णन किया गया है। वस्तुतः इसके पूर्व-रचित द्वादशांग वाणीके सारभूत समयसारादि ग्रन्थोंका सार ही खींचकर इसमें निबद्ध कर दिया गया है। 1. देखो-दर्शनसार गाथा 11-13 और भावसंग्रह गाथा 137-140 /