Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

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Page 180
________________ 147 तत्त्वसार भाषा मरै न मन जो जीवै मोह, मोह मरें मन जनमन होय / ज्ञानदर्श. आवर्न पलाय, अन्तरायकी सचा. जाय // 64 // जैसे भूप नसैं सब.सैन, भाग जाइ न दिखावै नैन / तैसे मोह नास जब होय, कर्मघातिया रहै न कोय // 65 // की. चारिवातिया हान, उपजै निरमल केवलग्यान / लोकालोक त्रिकाल प्रकास, एक समैंमैं सुखकी रास // 66 // त्रिभुवन इन्द्र नमैं कर जोर, माजै दोषचोर लखि भोर / आवं जु नाम गोत वेदनी, नासि मय नूतन सिवनी // 6 // आवागमनरहित निरबंध, अरस अरूप अफास अगंध / अचल अबाधित सुख विलसंत, सम्यकआदि अष्टगुणवंत // 68 // मृरतिवंत अमृरतिवंत, गुण अनंत परजाय अनंत / लोक अलोक त्रिकाल विथार, देखे जाने एकहि बार // 69 // - सोरठा लोकसिखर तनुवात, कालअनंत तहां बसे / धरमद्रव्य विख्यात, जहां तहां लौं थिर रहै // 70 // ऊरधगमन सुमाव, तात बंक चलै नहीं। लोकअंत ठहराव, आणु धर्मदरव नहीं // 7 // * रहित जन्म मृति एह, चरमदेहतें कछु कमी / जीव अनंत विदेह, सिद्ध सकल वंदौं सदा // 72 // ते हैं भव्य सहाय, जे दुस्तर भवदधि तरै / तत्त्वसार यह गाय, जैवंतौ प्रगटौ सदा // 73 // देवसेन मुनिराज, तत्त्वसार आगम कयौ / जो व्यावै हितकाज, सो ग्याता सिवसुख लहै // 74 // 1. राजाके मर जानेपर। 2. आयुःकर्म।.. 3. अनंतज्ञान वीर्य सुख दर्श सूक्ष्म अव्याबाघ अवगाहन अगुरुलघु / 4. अन्तिम शरीरसे। 5. शरीररहित / 6. मूलग्रन्थ (74 गाथा) देवसेनसूरिका प्राकृतमें है, उसका यह अनुवाद है / .

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