Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

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Page 106
________________ तत्वसार 73 मा निरन्तर-भेदज्ञानभावनाबलेन मोक्षाभिलाषिणात्यासन्नभव्येन स्वात्मनि भावनया भाव्यमिति भावार्थः // 28 // अथानन्तरं स्वध्यानेनात्मनः किं प्रकटयतीत्यभिप्रायं मनसि कृत्वाऽचार्यश्रीदेवसेनदेवः सूत्रमिदं प्रतिपादयतिमूलगाथा-थक्के मणसंकप्पे रुद्ध अक्खाण विसयवावारे / पयडइ बंभसरूवं अप्पा झाणेण जोईणं // 29 // संस्कृतच्छाया-स्थिते मनःसंकल्पे सेक्षाणां विषयव्यापारे। प्रकटयति ब्रह्मस्वरूपं आत्मा ध्यानेन योगिनाम् // 29 // टीका-'अप्पा माणेण जोईण' इत्यादि, पदखण्डनारूपेण वृत्तिकृता मुनिराजेन व्याख्यानं क्रियते-अयमात्मा परमात्मा ध्यानेन परमयोगिनां 'पयनइ बंभसरूवं' परमब्रह्मस्वरूपं प्रकटयति प्रकाशयतीत्यर्थः / कस्मिन् सति ? 'थक्के मणसंकप्पे रुद्ध अक्लाण विसयवावारे कर्मोदयजनितमनःसम्भूतलोकाकाशप्रमितसंकल्पौधे स्थिते सति नामकर्मोदयोत्पन्नद्रव्य-भावरूपपश्चेन्द्रिय आगें कहैं हैं—आत्मध्यानकरि परमविशुद्धस्वरूप प्रगट होय है. भा० व०-योगी जे हैं तिनकै आत्मध्यान करि परम ब्रह्मस्वरूप है सो प्रगट होय है। त उत्पन्न लोकाकाश-प्रमाण संकल्पनिका समहनिक रुकता संता, अर नामकर्मका उदयकरि उत्पन्न भए द्रव्य-भावरूप पांच इंद्रियनिका विषयनिकू रुकता संता परम ब्रह्म प्रगट होय है // 29 // 9 // निरन्तर भेदज्ञानकी भावनाके बलसे मोक्षाभिलाषी अतिनिकट भव्य पुरुषको अपनी शुद्ध आत्मामें भावना भानी चाहिए। यह इस गाथाका भावार्थ है // 28 // ___ अब इसके पश्चात् अपने ध्यानसे आत्माके क्या प्रकट होता है ? इन प्रश्नरूप अभिप्रायको मनमें धारण करके आचार्य श्री देवसेनदेव यह वक्ष्यमाण सूत्र कहते हैं- . ___ अन्वयार्थ-(मणसंकप्पे) मनके संकल्पोंके (थक्के) बन्द हो जानेपर (अक्खण) और इन्द्रियोंके (विसयवावारे) विषय-व्यापारके (रुद्ध) रुक जानेपर (जोईणं) योगियोंके (झाणेण) ध्यानके द्वारा (बंभसरूवं) ब्रह्मस्वरूप (अप्पा) आत्मा (पयडइ) प्रकट होता है। ____टोकार्थ-'अप्पा झाणेण जोईणं' इत्यादि गाथाका टीकाकार मुनिराज व्याख्यान करते हैं-यह आत्मस्वरूप परमात्मा ध्यानके द्वारा परमयोगियोंके ‘पयडइ बंभसरूवं' परम ब्रह्मस्वरूप प्रकट अर्थात् प्रकाशित होता है। प्रश्न-किस कार्य-विशेषके होनेपर परम ब्रह्मस्वरूप प्रकट होता है ? उत्तर-'थक्के मणसंकप्पे रुद्ध अक्खाण विसयवावारे' अर्थात् कर्मोदय-जनित मनमें उत्पन्न होनेवाले लोकाकाशप्रमाण संकल्प-समूहके स्थित हो जानेपर, तथा नामकर्मके उदयसे उत्पन्न द्रव्य और भावरूप पांचों इन्द्रियोंके विषय-व्यापारके निरुद्ध हो जानेपर परम ब्रह्मस्वरूप प्रकट होता है।

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