Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

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Page 118
________________ तत्वसार णेय तूसेई न च रुष्यति नैव तुष्यति, केनापि दुष्टजीवेन विराषितः सन् रोवं न करोति, केनापि विनयवता भव्यजीवेनानेकपा स्तुतः बाराषितः सन् तो हर्ष न करोति, स योगी भवति, नान्यो नाम्ना योगी भवतीति भावार्थः // 37 // अथानन्तरं पुनरपि सर्वजीवसमानत्वं नयविभागेन दर्शयतिमूलगाथा-जम्मण-मरणविमुक्का अप्पपएसेहिं सव्वसामण्णा / सगुणेहिं सव्वसरिसा णाणमया णिच्छयणएण // 38 // संस्कृतच्छाया-जन्म-मरणविमुक्ताः बात्मप्रदेशः सर्वे सामान्याः। स्वगुणः सर्वे सदृशाः ज्ञानमया निश्चयनयेन // 38 // टीका-'जम्मण-मरण' इत्यावि, पवखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते तद्यथा-'जम्मण-मरणविमुक्का अप्पपएसेहिं सव्वसामण्णा' लोकाकाशप्रमाणासंख्यातात्मप्रदेशः कृत्वा सर्वे जीवाः समाना एकरूपाः। पुनः कथम्भूताः ! जन्म-मरणविमुक्ताः, अपूर्वपर्यायोत्पत्तिरूपं जन्म, निर्विकारचिदानन्दैकस्वरूपात परमात्मतो विपरीतसविकारात्मकायु:कर्मविनाशेऽशुखप्राणपरित्यागरूपं मरणम्। जन्म च मरणं च जन्म-मरणे; जन्म-मरणाम्यां विमुक्ता रहिता जन्ममरणविमुक्ताः / आर्गे अन्य हू कहै है भा० व०-निश्चयनयकरि सर्व जीव जे हैं ते जन्म मरण करि रहित हैं, लोकाकाश-प्रमाण असंख्यात प्रदेशनिकरि सर्वजीव समान हैं, एकरूप हैं। अर केवलज्ञान-दर्शनादिकनि करि स्वगुण आत्मगणनिकरि सर्व जीव जै हैं ते समान हैं। अर ज्ञानमय केवलज्ञानकरि उत्पन्न भया ज्ञानमय अर्स निश्चयनयकरि जाननें // 38 // .. योग अर्थात् परम समाधि जिसके पाई जाती है. वह योगी कहलाता है। ___ प्रश्न-योगी होकर वह क्या करता है ? उत्तर-'ण य रूसइ णेव तूसेइ' न रुष्ट होता है और न तुष्ट होता है। अर्थात किसी भी दुष्ट जीवके द्वारा विराधना किये जानेपर न तो उसपर रोष करता है, और किसी विनयवान् भव्यजीवके द्वारा अनेक प्रकारसे स्तुति और आराधना किये जानेपर न सन्तोष या हर्ष करता है / ऐसा समदर्शी और समभावी पुरुष ही योगी होता है, अन्य कोई 'योगी' इस नामका धारक व्यक्ति योगी नहीं कहलाता है। यह इस गाथाका भावार्थ है // 37 // अब इसके अनन्तर फिर भी नय-विभागसे सर्व जीवोंकी समानता दिखलाते हैं अन्वयार्थ-(णिच्छयणएण) निश्चयनयसे सभी जीव (जम्मणमरणविमुक्का) जन्म-मरणसे विमुक्त (अप्पपएसेहिं) आत्मप्रदेशोंकी अपेक्षा (सव्वसामण्णा) सभी समान (सगुणेहिं सव्वसरिसा) आत्मीय गुणोंसे सभी सदृश और (णाणमया) ज्ञानमयी हैं। टीकार्थ-'जम्मण-मरणविमुक्का' इत्यादि गाथाका व्याख्यान करते हैं-'सभी जीव जन्ममरणसे रहित और आत्मप्रदेशोंसे सब समान हैं।' इसका अर्थ यह है कि लोकाकाशके प्रदेशप्रमाण असंख्यात आत्म-प्रदेशोंकी अपेक्षा सभी जीव समान अर्थात् एक रूप हैं। प्रश्न-पुनः वे सब जीव कैसे हैं ? ___ उत्तर-जन्म और मरणसे विमुक्त हैं। नवीन पर्यायकी उत्पत्तिको जन्म कहते हैं / निर्वि

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