Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ तत्त्वसार पुनः किविशिष्टः ? 'फदण-चलणेहि विरहिओ सिद्धो' परिस्पन्द-चलनाम्यां विरहितो विरक्तः सिद्धो निष्पन्नो भवति / पुनश्च कयम्भूतोऽभूत् ? 'अन्यावाहसुहत्यों' अव्याबाधसुखस्थः अव्याबाधं बाधारहितं च तत्सुखं च अव्याबाषसुखम्, तस्मिन् स्थितो लीनस्तन्मयो भवतीत्यर्थः / पुनश्च किं विशिष्ट: ? 'परमट्टगुणेहि संजुत्तो' परमार्थगुणैर्युक्तः,परमार्थाश्च ते केवलज्ञानाबयो गुणाश्च परमार्थगुणास्तैर्युक्तः संयुक्तः परिणतः सन् सदा तिष्ठतीति मत्वा भो सविनयामरसिंहतनय लक्ष्मण ! तेषां सिद्धानां केवलज्ञानानन्तसुखाधनन्तगुणा भावनीया भवद्भिरिति भावार्थः // 68 // . अथानन्तरं पुनरपि सिद्धगुणानाविस्करोति सूत्रकृवितिमूलगाथा--लोयालोयं सव्वं जाणइ पेच्छइ करणकमरहियं / मुत्तामुत्ते दव्वे अणंतपज्जायगुणकलिए // 69 / / संस्कृतच्छाया-लोकालोकं सर्व जानाति पश्यति करणक्रमरहितम् / . मूर्तामूनि द्रव्याणि अनन्तपर्यायगुणकलितानि // 69 // बहुरि सिद्ध कैसा होय है ? भा० व०-समस्त लोकालोककू करण-क्रम-रहित जाने है / जाकरि करिये सो तो करण कहिए। अर क्रम अनुक्रमतें जानें सो क्रम कहिए / सो सिद्ध करण-क्रम-रहित एकैकाल जान है, देखें है मूर्तामूर्त द्रव्यनिकू / मूर्त तो एक पुद्गल द्रव्य है, अर संसार-अपेक्षा जीव द्रव्य भी मूर्त है / अर द्रव्याथिक नयकरि अमूर्त है। बाकी के च्यारि धर्म अधर्म आकाश काल द्रव्य सर्वथा अमूर्त ही हैं। कैसे हैं द्रव्य ? अनंत पर्याय गुणनिकरि कलित कहिए व्याप्त ऐसे / तिनि सर्वनिकू जान है // 69 / / आनेको आगमन कहते हैं / यहां पर 'भवति' क्रियाका अध्याहार करना चाहिए। सिद्ध परमात्मा ऐसे गमन और आगमनसे रहित होता है। ... प्रश्न-पुनः सिद्ध परमात्मा कैसा है ? ___उत्तर-'फंदण-चलणेहि विरहिओ सिद्धो' अर्थात् परिस्पन्द और चलनसे सर्वथा रहित है। और सिद्ध है अर्थात् अपने सर्व कार्य सम्पन्न कर चुका है। प्रश्न-पुनः कैसा है ? - उत्तर-'अव्वाबाहसुहत्थो' अर्थात् सर्व प्रकारकी बाधाओंसे रहित ऐसा जो अव्याबाध सुख है, उसमें स्थित है, लीन है अर्थात् तन्मय है। प्रश्न-पुनः वह कैसा है ? .. उत्तर-परमट्ठगुणेहिं संजुत्तो' परमार्थ जो केवलज्ञानादि अनन्तगुण हैं, उनसे संयुक्त है, तद्रूप परिणत है। ऐसे स्वरूपवाला परमात्मा सिद्धालयमें सदाकाल अवस्थित रहता है। ऐसा जानकर हे सविनय अमरसिंहके पुत्र लक्ष्मण ! आपको उन सिद्धोंके केवलज्ञान, अनन्त सुख आदि अनन्त गुणोंकी भावना करनी चाहिए। यह इस गाथाका भावार्थ है // 68 // . अब इसके पश्चात् सूत्रकार फिर भी सिद्धोंके गुणोंको प्रकट करते हैं- अन्वयार्थ—(करणकमरहियं) इंद्रियोंके क्रमसे रहित एक साथ (सव्वं) सर्व (लोयालोयं)

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198