Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

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Page 151
________________ तत्वसार कस्मिन् कस्मिन् सति ? 'उभयविण? भावे णिय उवलद्धे सुसुद्धससरूवे' उभी रागद्वेषरूपो भावौ परिणामौ तयोद्वयोविनष्टयोः सतोः। तथा उपलब्धे सति कस्मिन् ? निजे स्वकीये / कथम्भूते ? सुष्ठु अतिशयः शुद्धश्चासौ स्वस्वरूपश्च सुशुद्धस्वरूपः, तस्मिन् सुशुद्धस्वरूपे प्राप्ते सति सिद्धा भवन्ति जीवा इति भावार्थः // 58 // अथ योगं समर्थयन्ति श्रीदेवसेनदेवाः-- मूलगाथा-किं किज्जइ' जोएणं जस्स य ण हु अत्थि एरिसी सत्ती। . फुरइ ण परमाणंदो सच्चेयणसंभवो सुहदो // 59 // संस्कृतच्छाया कि क्रियते योगेन यस्य च न हि अस्ति ईदृशी शक्तिः / ___ स्फुरति न परमानन्दः सच्चेतनसंभवः सुखदः // 59 // टीका–कि कोरइ जोएणं' इत्यादि व्याकरोति टीकाकारः-तेन. योगेन किं साध्यं भवति ? किमपि न / 'जस्स य ण हु अस्थि एरिसी सत्ती' यस्य च योगस्य ध्यानस्य स्फुटं यथा आगें और हू कहैं हैं भा० व०-तिस योग करि कहा करिए, कहा साध्य होय ? नाही कछु भी। जोग्य ध्यानकै प्रगट जैसे होय तैसें ऐसी शक्ति नांही, सामर्थ्य न होय, याही कारणलें। कहा नांही होय ? या आशंकानें होत संत कहिए है परमानन्द परम पद सुखस्वरूप नांही स्फुरायमान होय, नांही जागै। कैसा परमानंद ? सती शाश्वती समीचीन ऐसी जो चेतनाका निकटतें है उत्पत्ति जाकी सो सच्चेतनासम्भव कहिए / बहुरि भी कैसा ? सुखको देने वाला परम अतीन्द्रिय सुख देने वाला है // 59 // प्रश्न-वह परमानन्द क्या क्या होने पर प्रकट होता है ? उत्तर-'उभयविणढे भावे णिय-उवलद्धे सुसुद्धससरूवे' अर्थात् रागभाव और द्वेषभाव इन दोनों परिणामोंके विनष्ट होनेपर वह परमानन्द प्रकट होता है। प्रश्न-तथा किसके उपलब्ध होनेपर वह परमानन्द प्रकट होता है ? उत्तर-अपने सुशुद्ध स्वरूपके उपलब्ध होनेपर प्रकट होता है / प्रश्न-वह सु शुद्ध स्वरूप कैसा है ? उत्तर-सु सुष्ठु अर्थात् अतिशययुक्त, रागादि परभावसे रहित जो शुद्ध आत्मस्वरूप है, उस सुशुद्ध आत्मस्वरूपके प्रकट होनेपर परमानन्द प्रकट होता है। भावार्थ-उस सुशुद्ध स्वरूपके प्राप्त होनेपर जीव सिद्ध हो जाते हैं // 58 // . अब श्री देवसेनदेव योगका समर्थन करते हैं अन्वयार्थ (जोएण किं कीरइ) उस योगसे क्या करना है ? (जस्स य) जिसकी (एरिसी) ऐसी (सत्ती) शक्ति (ण हु) नहीं (अत्थि) है कि उससे (सच्चेयणसंभवो) सत्-चेतनसे उत्पन्न (सुहदो) सुखद (परमाणंदो) परमानन्द (ण फुरइ) प्रकट न हो। ___टीकार्थ-"किं कीरइ जोएण' इत्यादि गाथाका टीकाकार व्याख्यान करते हैं-उस योगसे क्या साध्य है ? कुछ भी नहीं है। 'जस्स य ण हु एरिसी सत्ती' अर्थात् जिस ध्यानरूप योगकी 1. 'कीरइ' इत्यपि पाठः /

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