Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ तत्त्वसार अथ रागपाभावे परमानन्दो विलसतीति प्रकटयति सूत्रकर्तामूलगाथा-उभयविण? भावे णिय-उवलद्धे सुसुद्धससरूवे / विलसइ परमाणंदो जोईणं जोयसत्तीए // 58 // संस्कृतच्छाया-उभयविनष्ट भावे निजे उपलब्धे सुद्धस्वस्वरूपे। विलसति परमानन्दो योगिनां योगशक्त्या // 5 // टीका-'जोईणं जोयसत्तीए' इत्यादि व्याल्यानं क्रियते-योगिनां चित्तनिरोषलक्षणो योगो विद्यते येषां ते योगिनस्तेषां योगिनां योगशक्त्या परमनिर्विकल्पसमाधिसामर्थेन 'विलसइ परमाणंदो' परा उत्कृष्टा मा लक्ष्मीरनन्तचतुष्टयरूपा यस्मिन्नसो परमः, परमश्चासावानन्वश्च परमानन्दो विलसति प्रकटीभवति / तथा चोक्त योगलक्षणं एकत्वसप्ततौ-- - साम्यं स्वास्थ्यं समाधिश्च योगश्चेतोनिरोधनम् / - शुद्धोपयोग इत्येते भवन्त्येकार्थवाचकाः // 25 // . आगे कहें हैं-राग द्वेष दोय भाव नष्ट होत संत स्वशुद्ध स्वरूप प्राप्त होत संत परमानन्दमैं विलास करें हैं भा०व०-योगीनिकै चित्त-निरोध लक्षण योग है विद्यमान जिनिकै ते योगी कहिए, तिनिकै योगकी शक्तिकरि परम निर्विकल्प समाधि जो ध्यानकी सामर्थ्यकरि परा कहिए उत्कृष्ट है ऐसी जो मा लक्ष्मी अनंत चतुष्टयरूप है जा विर्षे सो परम कहिए / परम ऐसा जो आनन्द सो परमानंद है, सो प्रगट होय है। उभय जो दोयरूप भाव परिणाम राग द्वेष तिनि दोऊनिकों नष्ट होत संत / तथा उपलब्ध होत संत / काहिङ ? निज स्वकीय अपने अतिशयकरि सुन्दर शुद्ध रूपकू प्राप्त होत संत सिद्ध होय है // 58 // _अब राग और द्वेषका अभाव होने पर परम आनन्द उल्लसित होता है, यह सूत्रकार प्रकट करते हैं अन्वयार्थ (उभयविण? भावे) राग और द्वेषरूप दोनों भावोंके विनष्ट होनेपर (सुसुद्धससरूवे) अत्यन्त शुद्ध आत्मस्वरूप (णियउवलद्धे) निज भावके उपलब्ध होनेपर ( जोयसत्तीए ) योगशक्तिसे ( जोईणं ) योगियोंके (परमाणंदो) परम आनन्द ( विलसइ) विलसित होता है। . टोकार्थ-'जोईणं जोयसत्तीए' इत्यादि गाथाका व्याख्यान करते हैं-चित्तके निरोध लक्षणरूप योग जिनके पाया जाता है, वे योगी कहलाते हैं। उन योगियोंके योगशक्तिसे अर्थात् परम निर्विकल्प समाधिकी सामर्थ्यसे 'विलसइ परमाणंदो' परम आनन्द विलसित होता है। पर नाम उत्कृष्टका है / मा लक्ष्मीका नाम है। वह अनन्त चतुष्टयरूप मा लक्ष्मी जिसमें पाई जाती है, उसे परम कहते हैं। ऐसा परम जो आनन्द होता है, वह परमानन्द विलसित अर्थात् प्रकट होता है। एकत्वसप्ततिमें योगका लक्षण इस प्रकार कहा है.. साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग, चित्त-निरोध और शुद्धोपयोग ये सब एकार्थ-वाचक नाम हैं // 25 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198