Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

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Page 144
________________ तत्वसार 8 / तथैव कृतापराषः कश्चितिरुपस्थाप्यत इत्युपस्थापना 9 / इति नवप्रकारप्रायश्चित्तनामाऽभ्यन्तरं तपः१। सम्यग्दर्शनविनयो ज्ञानविनयश्चारित्रविनयस्तदाराषकाचार्योपाध्यायसाधूनां विनय उपचारविनय इति चतुर्विषं विनयाख्यमाभ्यन्तरं द्वितीयं तपः 2 / आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसंघसाघुमनोज्ञानामिति तत्त्वार्थोक्तदशभेदभक्तिपूर्व वैयावृत्त्यं नाम तृतीयमाभ्यन्तरं तपः३। तथा चोक्तं तत्वार्यवृत्तिग्रन्थे श्रीपूज्यपाददेवैरिति / निश्चयेन शुद्ध-बुद्धचिदानन्दस्वरूपात्मतत्त्वे रुचिरूपं दर्शनं संवित्तिरूपं ज्ञानं समनुभवनं चारित्रम् / तत्रैव प्रतपनं तपः, शक्त्यनवमूहनं वीर्यमिति पंचाचारान् निश्चय-व्यवहारानाचरन्ति स्वयं परान् शिष्यजनानाचारयन्तीत्याचार्याः 1 / मोक्षार्थशास्त्रमुपेत्य तस्मावधीयत इत्युपाध्यायः 2 / महोपवासानुष्ठायो तपस्वी 3 / शिक्षाशील: शैक्षः 4 / रुजादिक्लिष्टशरीरो ग्लान: 5 / स्थविरसन्ततिर्गणः 6 / दीक्षकाचार्यशिष्यसंस्त्यायः कुलम् 7 / चातुर्वयंश्रमणनिवहः संघः। ऋषियतिमुन्यनगारनिवहो मुंन्यायिकाधावकमाविकानिवहो वा संघः 8 // चिरकालप्रवजितः साधुः 9 / मनोज्ञो लोकसम्मतः 10 / विभवाविनाशायं तावदनुष्ठानाविभिधर्मोपकरणसंयमसाधकः सम्यक् स्थापनं च प्रतिकारो वैयावृत्त्यम् / बाह्यद्रव्याभावे कायेन वा पित्त-श्लेष्माद्यन्तर्म दीक्षा देना सो उपस्थापना नामका नौवां प्रायश्चित्त है 9 / यह नौ प्रकारका प्रायश्चित्त नामका प्रथम आभ्यन्तर तप है 1 / - मानकषायको छोड़कर विनम्र भावको धारण करना विनय कहलाता है। यह विनय तप चार प्रकारका है-सम्यग्दर्शन विनय, ज्ञान विनय, चारित्र विनय, तथा इनके आराधक आचार्य, उपाध्याय और साधुओंकी विनय करना उपचार विनय, इन चार भेदरूप, विनय नामका दसरा आभ्यन्तर तप है 2 / / .. आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु और मनोज्ञ इन तत्त्वार्थ सूत्र-कथित दश प्रकारके साधुओंकी भक्तिपूर्वक सेवा-टहल करना सो वैयावृत्त्य नामका तीसरा आभ्यन्तर तप है 3 / जैसा कि श्री पूज्यपाददेवने तत्त्वार्थवृत्ति नामक सर्वार्थसिद्धि ग्रंथमें इनका स्वरूप कहा है, वह यहां कहा जाता है ___निश्चयनयसे शुद्ध-बुद्ध चिदानन्दस्वरूप आत्मतत्त्वमें रुचिरूप दर्शन, संवित्तिरूप ज्ञान, अनुभवरूप चारित्र, उसी चारित्रमें क्लेश-कष्टादिके सहनरूप तप और उसमें आत्मशक्ति नहीं छिपाना वीर्य कहलाता है। इन पांच प्रकारके निश्चय और व्यवहार आचारोंको जो स्वयं आचरण करते हैं और अन्य शिष्यजनोंको आचरण कराते हैं, वे आचार्य कहलाते हैं 1 / समीप जाकर जिनसे मोक्ष-विषयक शास्त्र पढ़े जाते हैं, वे उपाध्याय कहलाते हैं 2 / महान् उपवास आदि करनेवाले साधुको तपस्वी कहते हैं 3 / शास्त्रोंकी शिक्षा ग्रहण करनेवाले साधुको शैक्ष्य कहते हैं 4 / रोग आदिसे पीड़ित शरीरवाले साधुको ग्लान कहते हैं 5 / वृद्ध साधुओंकी परम्पराको गण कहते हैं 6 / दीक्षा देनेवाले आचार्यकी शिष्य परम्पराको कुल कहते हैं 7 / ऋषि, यति, मुनि और अनगार इन चार वर्णके साधु-समुदायको संघ कहते हैं / अथवा मुनि, आर्यिका, श्रावक

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