Book Title: Tattvasara
Author(s): Hiralal Siddhantshastri
Publisher: Satshrut Seva Sadhna Kendra

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Page 26
________________ प्रस्तावना 25 आदिम प्रशस्तिमें आये हुए 'कणयद्दि' पदका संस्कृत रूप 'कनकाद्रि' है और यतः कनक नाम सुवर्ण (सोना) का है और अद्रि नाम गिरि (पर्वत) का है, अतः कनकाद्रि नाम 'सोनागिरि' का सिद्ध है। अन्तिम प्रशस्तिकी प्रथम पंक्तिमें 'कमलकित्ति' और दूसरी पंक्तिमें 'पंकजकित्ति' नाम पर्यायवाची है, अतः वे एक ही 'कमलकीति' को सिद्ध करते हैं / उक्त प्रमाणोंके आधार पर यह सिद्ध होता है कि कमलकीर्ति सोनागिरिके भट्टारक-पट्ट पर आसीन रहे हैं। कमलकोतिने अपनेको कहीं मुनि, कहीं यति और कहीं भट्टारक नामके साथ गाथाओंकी टीका करनेका उल्लेख किया है। जिनके निमित्तसे प्रस्तुत टीकाका निर्माण हुआ है उन श्री अमरसिंहने भी 2-1 स्थलों पर उन्हें भट्टारक नामसे सम्बोधित किया है। गाथाओंकी टीका प्रारम्भ करते हुए इन्होने कहा अपनको टोकाकार, कहीं टीकाकर्ता, कहीं वत्तिकार और कहीं वृत्तिकर्ता कहा है। इसी प्रकार कई स्थानों पर अपनेको 'पंकजकीत्ति' भी कहा है, क्योंकि पंकज कमलका पर्यायवाची नाम है। .. टीकामें उद्धृत गाथाओं एवं श्लोकोंको देखते हुए यह ज्ञात होता है कि ये व्याकरण और शब्द-कोषके वेत्ता होनेके साथ गोम्मटसार जीवकांड आदि सिद्धान्त ग्रन्थोंके भी अच्छे ज्ञाता थे / टीकामें इन्होंने एकत्त्वसप्तति नामक अनेकार्थ कोषका, पूज्यपाद-रचित सर्वार्थसिद्धि नामक तत्त्वार्थवृत्तिका और त्रैलोक्यदीपकका नामोल्लेख करके उनके उद्धरण दिये हैं / टीकाकारने गाथा 62 की टीकामें एक भावलिंगी शिवकुमारका उल्लेख किया है, जो कि अपने अन्तःपुरके भीतर रहते हुए ही षष्ठोपवास करते थे और पारणाके दिन पर-घरसे लाये हुए कांजिक आहारको ग्रहण करते थे। टीकाकारने यह उदाहरण चतुर्थकालके किसी शिवकुमारका दिया है, या पंचमकालके किसी उदासीन शिवकुमार का ? यह ज्ञात नहीं हो सका है। . इस टीकाकी सबसे बड़ी विशेषता मूल तत्त्वसारकी गाथाओंको पर्वोमें विभाजित करना है। प्रारम्भकी आठ गाथाओंको स्वगत और परगत तत्त्वका वर्णन करनेवाला प्रथम पर्व कहा है। दूसरे पर्वमें 9 से लेकर 21 तककी 13 गाथाओंकी व्याख्या कर उसे निरंजनस्वरूप स्वगत तत्त्वका प्रतिपादक कहा है। तीसरे पर्वमें 22 से लेकर 32 तकको 11 गाथाओंकी व्याख्या कर उसे ध्यानके माहात्म्यका वर्णन करने वाला कहा है। चौथे पर्वमें 33 से लेकर 45 तककी 13 गाथाओंकी व्याख्या कर उसे भेदाभेदरत्नत्रयात्मकमोक्षमार्गकी भावनाके फलका वर्णन करने वाला कहा है। पाँचवें पर्वमें 46 से लेकर 66 तककी 21 गाथाओंकी व्याख्या कर उसे धर्म ध्यानकी परम्परासे प्राप्त शुक्लध्यानके फलस्वरूप केवलज्ञानकी प्राप्तिका वर्णन करने वाला कहा है। अन्तिम छठे पर्वमें 67 से लेकर 74 तककी 8 गाथाओंकी व्याख्या करके उसे सिद्धोंके स्वरूपका वर्णन करनेवाला कहा है। टीकाकार कमलकीतिने प्रत्येक गाथाकी उत्थानिकामें तत्त्वसारके रचयिता देवसेनको परमाराध्य, परमपूज्य भट्टारक विशेषणके साथ, कहीं 'भगवान्' पदके साथ, कहीं 'देवसेनदेव' कहकर और कहीं सूत्रकार कहकर अति परम पूज्य विशेषणोंके द्वारा उनके नामका उल्लेख किया है। . प्रत्येक पर्वके प्रारम्भमें टीकाकार कमलकीत्तिने अमरसिंहको सम्बोधन करने वाला एक

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