Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7 Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri View full book textPage 7
________________ प्रचलित है। यद्यपि गृद्धपिछाचार्य ' यह नाम 'कुंदकुंदाचार्य' के नामोंमे है । तथापि । कुछ दूसरे ऐतिहासिक - कथन' के अनुसार कुंदकुंदाचार्यके बादमे जो नन्दिसंघ के प्रधानाचार्य हुए यह उन्हींका नाम है । परम्परागत कथनानुसार श्री कुंदकुंदाचार्यका स्वर्गवास महावीर निर्वाणाब्द ७०१ मे हुआ है, और उसी वर्ष गृद्धपिच्छाचार्य ' आचार्य स्थानपर नियुक्त हुए थे इस ऐतिहासिक आधार पर तत्वार्थ सूत्रकी रचना महावीर निर्वाण संवत् ८ वें ( शतमान) मे हुई होगी तत्वार्थ सूत्र' दिगंबर-खेतांबर और वापनीयादि सर्वं पंथोंमे मान्यता प्राप्त महान ग्रन्थरत्न है। दस अध्यायोंमे समाप्त होनेवालें इस ग्रंथराजकी कई व्याख्यायें केवल व्याख्या तक ही सीमित न रहकर 'स्वतन्त्र ग्रंथ' की मान्यता प्राप्त कर चुकी है। इसे हम ' तत्वार्थसूत्रका महत्व और भी अच्छी तरह समझ सकते हैं। " 1 सर्वार्थसिद्धि " वृत्ति - ( २ ) यह अत्यन्त प्राचीन सर्वात व्याख्या है । देवनन्दी - पूज्यपादने इस वृत्तिकी रचना की है । आगमपारगामी पूज्यपादने मूलपंचके प्रत्येक सूत्रकी व्युत्पत्ति तथा अर्थका औचित्य इसमें बताया है । सूत्रके उद्दि ष्टार्थमें आगमाविरोधके साथ सूक्ष्म विश्लेषण किया है। इसमें कोई अत्युक्ति न होगी कि इस स्वास्गाके सूक्ष्म विवेचनात्मक विश्लेषणको देखनेवाला हर कोई विद्वान दंग रह जाता है। नतमस्तक होता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सर्वार्थसिद्धि की रचना द्वारा आचार्य पूज्यपादने जैनसिद्धांत एवं संस्कृत साहित्य को अपूर्व संपत्ति दी है। इस बात की पुष्टि के लिए ' आगमचक्ष पण्डितप्रवर फलचन्दजी 'सिद्धांत शास्त्रीके ' मन्तब्यको उन्हींके वचनों यहां पर उल्लेख करना ज्यादा उचित होगा। पढ़िये — - 1 "आचार्यं पूज्यपादने इसमें केवल भाषा सौष्ठवका हीं ध्यान नहीं रखा है । अपि तु आगमिक परंपरा का भी पूरी तरह निर्वाह किया है । प्रथम अध्यायका सातवां और आठवां सूत्र इसका प्रांजल उदाहरण है । इन सूत्रों की व्याख्याका आलोडन करते समय उन्होंने सिद्धांत ग्रंथोंका कितना गहरा अभ्यास किया था इस बातका सहज ही पता लग जाता है। इस परसे हम यह दृढतापूर्वक कहने का साहस करते हैं कि उन्होंने सर्वार्थसिद्धि लिखकर जहां एक और संस्कृत साहित्यको श्रीवृद्धि की है वहां उन्होंने परपरासे आए हुए आगमिक साहित्यकी रक्षाका श्रेय भी संपादित किया है। निचोडरूपमे सर्वार्थसिद्धि की रचना शैली विषयमें संक्षेप मे यही कहा जा सकता है कि वह ऐसी प्रसन्न और विषयस्पर्शी शैलीमे लिखी गई है जिसमे वाचक उमास्वाति प्रभृति सभी तत्त्वार्यसूत्र के भाष्यकारोंको उसका अनुसरण करनेके लिए बाध्य होना पड़ा है। 11 - • तत्वार्थाधिगम भाष्य 1 यह तो हम पहले ही बता चुके हैं कि श्वेतांबर पन्यमे तत्त्वार्थ सूत्र कहा जाता है। ऐसा भी सुननेमे आता है कि तत्त्वार्थाधिगमसूत्रका यह बात विवादापन्न हैं । कुछ विद्वानों के मतानुसार श्वेतांबर पंथियोंने अपने उद्देश्य से मूल सूत्रोंके कुछ स्थानोंमे कुछ छोटे-मोटे परिवर्तन कर दिये हैं । विफल प्रयत्न किया है कि भाष्य स्वयं उमास्वातिने रचा है।' सर्वार्थसिद्धि भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, प्रस्तावना पृष्ठ, २५. " को ● तत्त्वार्थाधिगमसूत्र भाष्य स्वयं उमास्वातिने रचा है । लेकिन पन्थकी मान्यता प्राप्त करने के तथा अन्तने यह सिद्ध करनेका "Page Navigation
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