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तर बिन्दु:
( ५० )
७ संभिन्न श्रोतबुद्धि बार योजन लंबायमान विस्तार अने नव योजन पहोळु सैन्य त्यांथी चक्रवर्तिना सैन्यनो शब्द, हस्ति, घोडा मनुष्य, गाडां, रथ, प्रमुख तेनो शब्द सर्व जाणे. राइ, सरसव हाथीना उपरथी खरेतो तेनो मूक्ष्मशब्द पण सांभळे, उत्कृष्ट कर्णेन्द्रियतुं बल तपोधनने होय तेथी एक कालमां सर्व शब्द सांभळे. तेने संभिन्नश्रोतलब्धि कहेले.
८ आठमी दुरास्वादलब्धि लक्षण कहेछे. मुनिवर्य संयमवलोत्पन्न रसनेन्द्रियक्षयोपशमभाववलथी, भोगविकार रहीत एवा नव योजन अधिकक्षेत्रे अनेक रस विकार भिन्न भिन्न जाणे, स्वाद जाणे. परिमल जाणे, स्पर्शरसरूप देखे. स्पर्शरस गंध रूप शब्दना भाव निरागपणे जाणे, तेने दुरास्वादन बुद्धि लब्धि कहेछे.
९ स्पर्शलब्धि १० स्वादलब्धि ११ घ्राणस्वादलब्धि १२ शब्द स्वादलब्धि १३ दशपूर्वधरणलब्धि, १४ चतुर्दश पूर्वधरण समर्थलब्धि एपलब्धि जेम उपजे तेम प्रकार बतावेछे जिनशासन भक्तिकारक देवांगना, गुरूसाधु भक्तचउद पूर्वनी अधिष्ठाता, आपणा गुरुनी परीक्षा करे. रोहिणी प्रमुख विद्यादेवी पञ्चशत, भक्तिथी निर्मलभाव प्रकाशती आगे रहीने नमस्कार करीने अनेक प्रकारे गुणस्तुति करे, प्रार्थना करे. दयाभण्डार, निर्ग्रन्थ, निरीहभावथी क्लेश घणो सहेछे, ते कडे के है मुनीश्वर तुमारी आज्ञा इच्छुछु, जे कार्य कहेशो ते अमो भुं. इत्यादि अनेक वचन. विद्या देवी वोले, तोपण मुनीश्वर आत्मस्वभावमां लीन रहे. सांसारिकसुखनी वाञ्छा
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