Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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तरच विन्दुः
५०२ अज्ञान कष्ट करवामां तामसी तापसनी पेठे अल्प फळछे.
५०३ जगत्मां ज्ञानिनीज बलिहारीछे.
५०४ दृष्टिरागी, दोषने देखी शकतो नथी.
५०५ शिष्योनी शोभा विनयवृत्तिमांजछे.
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५०६ यदि सद्गुरु शिष्यने सर्पना दांत गणवानुं कहे तो पण शिष्ये गुरुनी आज्ञा स्वीकारवी. मनमां एम समज के तेनुं प्रयोजन गुरु जाणेले. गुरु तो शिष्योनुं एकान्त हित इच्छेछे.
५०७ सुनक्षत्र अने सर्वानुभूतिनी पेठे गुरुपर भक्तिराग थवो जोइए.

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