Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्वबिन्दुः ५५९ पांच प्रकारना अन्तराय, हास, रति, अरति, मय, जुगुप्सा, शोक, शोक, काम, मिथ्याख, अज्ञान, निद्रा, अविरति, राग, द्वेष ए अष्टादश दोषरहित तीर्थंकरदेव जाणवा. ५६० १ घणुं भोजन करवाथी, २ अति निद्राथी, ३ अतिजागवाथी ४ झाडो ( विष्टा ) रोकवाथी, ५ पेशाव ( मूत्र ) रोकवाथी. ६ मार्गमां घणुं गमन करवाथी, ७ प्रतिकूल भोजन करवाथी, ८ इन्द्रियोना काम अत्यंत विकारथी, रोगोनी उत्पत्ति थायछे. मूत्रनिरोधथी चक्षुने हानि थायछे. झाडाना निरोधथी जीवितव्यनो नाश थायछे. ५६१ क्षेत्र अने कालनी अपेक्षाए अवधिज्ञानना असंख्यात भेद छे, द्रव्य अने भावनी अपेक्षाए अवधिज्ञानना अनन्त भेदछे. क्षेत्र अने काल, असंख्यछे तेथी अवधिज्ञानना असंख्य भेद घटे छे. पुद्गल द्रव्य अनंत अने भाव (पर्याय ) पण पुद्गलद्रव्यना अनन्तछे माटे अनन्त भेद कह्याछे. (वि) ५६२ देवता अने नारकीओने क्षयोपशमभावे भवमत्ययिक अवधि ज्ञानछे अने मनुष्य तथा तिर्यंचने गुणप्रत्ययिक अवधिज्ञान होयछे. (विशे) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202