Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 199
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६३६ ( १९० ) तरवधिन्दु. नव जाणवा. सूक्ष्म संपराय चारित्रमां मूल हेतु वे अने उत्तर हेतु दश, तेमां एक संज्वलननो लोभ अने नव योग जाणवा. यथाख्यात चारित्रमां मूळ हेतु कर्म बंधनमां एक छे. अने उत्तर हेतु अगियार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोक. यथा प्रकारा यावन्तः संसारावेश हेतवः तावन्तस्तद्विपर्यासा, निर्वाणावेश हेतवः || १ || जे प्रकारना जे जे संसारना हेतुओछे तेज विपर्यासपणाने पामेला मुक्तिना हेतुओछे. जे जे कर्म बंधना हेतुओछे ते तेज कर्म नाशना हेतुओछे. ६३७ संमति निश्रय समकित प्रगटी शकेळे अने तेना हेतुओछे. ६३८ हे त्रिशलानन्दन वीराधिवीर !!! व्यवहार चारित्र स्वीकारी तमोर तेमां एकांतवास सेव्यो. तेमां निःसंगतानी मुख्यताए ध्यानमा निमनताज मुख्य उद्देश संभवे छे. ६३९ अज्ञानिन सहुधी बुरी एकान्त, ज्ञानयुद्ध व्यानीने सहुथी शुरी एकान्त. ६४० ध्यानमां विनकारक, भय अने लज्जानो परिहार कर, For Private And Personal Use Only

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