Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६४ ) तयकिदुः : ५४० मनुष्य, पोताना छायापुद्गल प्रतिबिंबने आरीसामां देखेछे. ५४१, आकाशना अतृमध्यरुचक प्रदेशो समभूतला प्रदेशमां मेरु मtrai रह्याछे. धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकायना आठ मध्य रुचक प्रदेशोछे ते आकाशना आठ रुचक प्रदेशमां सदा रहेले. ते बेनुं लोकाकाश तुल्यपछे माटे पोताना प्रदेशोवडे लोकाकाशना प्रदेशोने व्यापीने अविचलपणावडे सर्वदा रहेवापणाथी. तथा जीवना आठ रुचक प्रदेशो तो स्वशरीरना मध्य भागमां सर्वदा रहेछे, केवलि समुद्घात कालमां मेरु मध्यस्थ आकाशना आठ रुचक प्रदेशोमां आत्माना आठ रुचक प्रदेश रहेछे. अन्यदाखविचला एवेति ते आठ जीवना प्रदेशो जघन्यथी एक आकाश प्रदेशने अवगाहेछे. वेमां त्रणमां, चारमां, पांचमां, छमां आत्माना रुचकपदेशो अवगाहेछे. संकाचविकाश स्वभावणाथ उत्कर्षथी आठप्रदेशोमां एकेकमां अवगाहनपणाथी अवगाहेछे. पण विशेष के सात प्रदेशमा अवगाहता नथी. ते प्रकारना स्वभावथी. ते आठ जीवना रुचक प्रदेशो कर्मथी लेपायमान थता नथी. सर्वदा निरावरण रहेछे. बाकीना आत्माना प्रदेशो तो कर्मथी लेपायला होयछे. आवर्तमान जलनी पेठे निरंतर उद्वर्तन परिवर्तनपणुं शेष आत्माना प्रदेशोनुंछे. ( म. सा ) ५४२ द्रव्य मन विना भाव मन नथी. असंज्ञीनी पेठे. For Private And Personal Use Only J

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