________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तत्वविन्दुः १९१ कार्मण शरीरथी कार्मण वर्गणा भिन्न छेः कथंचित् अभिन्नपण छे
१९२ तेजस शरीरने कोइ आचार्य अनादि मानता नथी.तेमना मतमा
तेजोलब्धिथी तेजस शरीर उत्पन्न थाय छे, अने ते कहेछे केक्रोधावेशे तेजोलब्धिथी-उष्णतेजः शरीर अने दया परिणामथी शोततेजः शरीर उत्पन्न थइ अनुक्रमे घात अने उपकार करे छे.
१९३ मनुष्य अने तिर्थच आहार पयाप्ति एक समयमां पूरी करे अने
बाकीनी पयाप्ति अन्तर्मुहूर्तमां करे.देवता अने नारकी आहार पयाप्तिअन्तर्मुहूर्तमांकरे.अनेवाकीनी पर्याप्तिया एकसमयमांमांकरे.
१९४ एकपरमाणुन प्रतिबिंब पडतुंनथी.अनंताणुक स्कंधनपति विंबपड,
१९५ औदारिक शरीर असंख्यातां अने औदारिक शरीर धारण
करनारा जीव अनंत. कारण के साधारण वनस्पतिमां अनंत जीवनुं एक शरीरछे.
For Private And Personal Use Only