Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 159
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५० ) तर बिन्दु . वेदनीयनो बंधछे. पण उत्तम पुद्गल ग्रहे. बीजे समये निर्जरे (र) ४८१ काललब्धि, इन्द्रियलब्धि, उपदेशलब्धि, उपशमलब्धि, प्रयोगतालब्धि ए पांच लब्धि पामे त्यारे जीव स्वआत्मबोध समकित धर्म पामे. (रत्न) ४८२ का सरगना द्रव्य अने भाव ए भेद कह्याछे. द्रव्य का सरगना चार भेद जाणवा. १ शरीरका उसग्ग २ उपधिका उसग भात ३ पाणीनो त्याग ४ ते पण काउसग्ग, भावका उसरगना ऋण भेदछे. १ कपायका उसग्ग २ संसारका उसग्ग ३ कर्म्मका उसग्ग. १ चारकषायना त्यागरूप कपायकाउसग्ग २ चारगतिनिवारणरूप संसारका उसग्ग. अष्टकर्म क्षय करवा कर्म काउसग्ग. (र) ४८३ भावमोक्ष सम्यग्दृष्टिने होय, द्रव्यमोक्ष साधुने होय, गुणमोक्ष ते केवलीने तेरमा तथा चउदमा गुणस्थानकमां होय. ४८४ जैनदर्शन ते उपयोगे तथा अक्रियभावेछे. जैनदर्शन श्रद्धान ते शुद्धोपयोग आत्मभावेछे, अक्रियभावेछे, अने बीजायोगे क्रियाधर्मछे. For Private And Personal Use Only

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