Book Title: Tattva Bindu
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 156
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्वबिन्दु. (१७) याचना, आकोश, सत्कार, अढाभ, प्रज्ञा, अज्ञान, ए छ वचनथी होय. अने बाकीना शीत, उष्ण, दंश, चर्या, शय्या, अचेल, मल, रोग, नैपेधिकी, वध, तृणस्पर्श, ए एकादश कायाथी होय. ४७० दर्शन उपयोगरूप औघसंज्ञा अने ज्ञानोपयोगरूपालोकसंज्ञा एम स्थानांग टीकाकारनो अभिप्रायछे. ओघ संज्ञा अव्यक्त उपयोगरुप अने स्वच्छंद घटित विकल्परुप लोक संज्ञा,एम आचारांग त्तिमांछे, मतिज्ञानावरणीय कर्म क्षयोपशमथी शब्दार्थ गोचर सामान्य अवबोध क्रिया ते ओघ संज्ञा अने तेनो विशेषावबोधरुप जे क्रिया ते लोक संज्ञा. इति प्रवचन सारोद्धार दृत्तिमांछे. ४७१ नेजस नामकर्मना उदयथी अने अशाता वेदनीयना उदयथी आहाराभिलापरूप आहारसंज्ञा थायछे. त्रासरूप भयसंज्ञा. मूर्छारूप परिग्रहसंज्ञा स्त्री आदि वेदोदयरूप मेथुनसंज्ञा. ए त्रण मोहनीयना उदयथी होयछे. क्रोधसंज्ञा. गर्वरूप मानसंज्ञा, वक्रतारूप मायासंज्ञा, गृद्धि रूप लोभसंज्ञा, विप्रलापरूप शोकसंज्ञा, मिथ्यादर्शनरूप मोहसंज्ञा. ए छ संज्ञाओ मोहोदयजन्यछे. शातारूप सुख संज्ञा अने दुःखरूप अशातासंज्ञा ए बे वेदनीय कर्मना उदयथी उत्पन्न थायछे. ज्ञानावरणीय अने मोहनीयना उदयथी चित्तविप्लुतिरूप विचिकित्सारूप संज्ञा जाणवी. स्व. च्छंद आदि प्रागुक्त लक्षणरूप ज्ञानावरण क्षयोपशमयी अने मोहना उदयथी लोकसंज्ञा प्रगटेले. अव्यक्त उपयोग वल्लिवि For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202