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दुः
( ८५ )
२४८ एकेन्द्रियमां पूर्वप्रतिपन्न अने प्रतिपद्यमानक उभयनो अभावछे. कर्मग्रंथना मत प्रमाणे लब्धि पर्याप्त बादर पृथ्वी, अप, वनस्पति, अकरणपर्याप्ति अवस्थामां पूर्वप्रतिपन्न होय. ते समये सास्वादन समकितनी अस्तिताले माटे.
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२४९ विकलेन्द्रिय, उभयना मत प्रमाणे करण अपर्याप्ता, सास्वादनने पूर्वभवथी अंगीकार करीने आवे ते अपेक्षाए पूर्वप्रतिपन्न होय. पण प्रतिपद्यमान न होय.
२५० पंचेन्द्रियजीव तो सामान्यतः नियमयी पूर्वप्रतिपन्न होय. प्रतिपथमानकनी तो भजना जाणवी.
२५१ कायद्वारमां पृथिवी, अप्, तेज, वायु, वनस्पतिमां उभयाभाव जाणवो, सकामां पंचेन्द्रियनी पेठे जाणं.
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