Book Title: Tark Sangraha
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Siddha Saraswati Prakashan

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Page 22
________________ परिमाण-संयोगलक्षणे ] 38] [ 39 [ तर्कसंग्रहः 6. परिमाणस्य किं लक्षणं, के च तस्य भेदाः ?] मानव्यवहारासाधारणं कारणं परिमाणम् / नवद्रव्य वृत्ति / तच्चतुर्विधम्-अणु महद्दी हस्वं चेति / ____ अनुवाद [ 6. परिमाण का क्या लक्षण है और उसके भेद कौन हैं ? -माप (मान-एक गज, दो गज, एक किलो, दो किलो आदि नापने और तौलने ) के व्यवहार के असाधारण निमित्तकारण (प्रधान कारण) को परिमाण गुण कहते हैं। वह सभी नवों द्रव्यों में रहता है। अणु (सूक्ष्म), महत् ( बड़ा ), दीर्घ (लम्बा) और ह्रस्व (नाटा) के भेद से वह चार प्रकार का है। व्याख्या-यह वस्तु इतनी है, यहाँ से यहाँ तक है, छोटी है, बड़ी है इत्यादि व्यवहार के प्रति जो असाधारण कारण है वह परिमाण है। सूत्र में अणु आदि भेदवाचक धर्मी शब्द धर्म अर्थ (भाव प्रधान अर्थ) में प्रयुक्त हैं। अतः अणु आदि से क्रमशः तात्पर्य है-अणुत्व, महत्त्व, दीर्घत्व और ह्रस्वत्व / ये चारों प्रकार परम और मध्यम के भेद से दो-दो प्रकार के है। परमाणु सबसे अधिक सूक्ष्म है और उसकी सूक्ष्मता को पारिमाण्डल्य कहते हैं। अतः यह परम अणु का उदाहरण है। द्वघणुक मध्यमाणु है। आकाश परम महत्त्व (विभुत्व) है। समस्त दृश्य पदार्थ मध्यम महत्त्व हैं। कुछ लोग ह्रस्वत्व और दीर्घत्व को क्रमशः अणुत्व तथा महत्त्व के ही अन्तर्गत मानते हैं परन्तु दोनों पृथक हैं क्योंकि अणत्व और महत्त्व से उसके घनफल का बोध . होता है जिसे हम किलो आदि में नापते हैं। दीर्घत्व और ह्रस्वत्व को हम मीटर आदि से नापते हैं। वस्तुतः ये सभी शब्दसापेक्ष हैं। परिमाण भी नित्य और अनित्य है। पारिमाण्डल्य और विभुत्व परिमाण नित्य हैं शेष दो अनित्य / [7. पृथक्त्वस्य किं लक्षणम् ? ] पृथग्व्यवहारासाधारणकारणं पृथक्त्वम् / सर्वद्रव्यवृत्ति। अनुवाद [7. पृथक्त्व का क्या लक्षण है ? ]-पृथक् ( यह घट उस पट से भिन्न है इत्यादि ) व्यवहार के असाधारण (प्रधान) निमित्तकारण को पृथक्त्व कहते हैं। पृथक्त्व सभी नवों द्रव्यों में रहता है। व्याख्या-'ये दोनों पृथक् = अलग हैं' इत्यादि व्यवहार (किसी पदार्थ को अन्य पदार्थों से पृथक् रूप से जानना ) जिस गुण के आश्रय से होता है वही पृथक्त्व गुण है। अन्योन्याभाव से पृथक्त्व गुण भिन्न है / 'घटः पटो न' यह अन्योन्याभाव है और 'पटाद् घट: पृथक्' यह पृथक्त्व है। इस तरह पृथक्त्व से (घट से पट की पृथक् ' विशेष सत्ता का बोध होता है, अभाव का नहीं। पृथक्त्व दो पदार्थों की वस्तुनिष्ठ पृथकता को बतलाता है जबकि अन्योन्याभाव उनके एक ही स्वभाव न होने को प्रकट करता है। यह पृथक्त्व गुण सभी द्रव्यों में रहता है। संख्या-भेद के समान यह एकपृथक्त्व से लेकर परार्धपृथक्त्व पर्यन्त होता है। [8. संयोगस्य किं लक्षणम् ? ] संयुक्तव्यवहारहेतु: संयोगः / सर्वद्रव्यवृत्तिः। / ___ अनुवाद-[८. संयोग का क्या लक्षण है ? 1 संयुक्त ( यह पदार्थ इससे मिला हुआ है अथवा ये दोनों पदार्थ सम्मिलित हैं इत्यादि) व्यवहार के [असाधारण निमित्त ] कारण को संयोग गुण कहते हैं। यह सभी द्रव्यों में रहता है। व्याख्या-उन दो पदार्थों के मिलने को संयोग कहते हैं जो कभी अलग-अलग थे ('अप्राप्तयोस्तु या प्राप्तिः सैव संयोग ईरितः / ' कारिकावली 115) / इससे यह सिद्ध है कि दो व्यापक द्रव्यों के एक साथ रहने पर भी उनमें संयोग नहीं माना गया है। संयोग हमेशा अनित्य और कृत्रिम होता है। यह संयोग दो प्रकार का है-कर्मज-संयोग और संयोगज-संयोग। जैसे-हाथ की क्रिया ( कर्म ) करने पर जो हाथ और पुस्तक का संयोग है वह कर्मज

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