Book Title: Tark Sangraha
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Siddha Saraswati Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ '78 ] [ तर्कसंग्रहः पञ्चावयवाः ] [79 व्यतिरेकव्याप्ति से अनुमान होता है / जैसे-शब्द गुण है, क्योंकि वह के लक्षण-प्रसङ्ग में भी की गई है। 'पर्वतो वह्निमान् धूमात्' इस न द्रव्य है और न कर्म / (3) सामान्यतोदृष्ट का अर्थ है, कारण- अनुमान में प्रतिज्ञादि पाँच अवयव निम्न प्रकार होंगेकार्य-सम्बन्ध के आधार पर परोक्ष पदार्थ का अनुमान / जैसे (1) प्रतिज्ञा-साध्यवत्तया पक्षवचनं प्रतिज्ञा = वह्नि आदि 'आत्मा है, बुद्धि आदि गुणों का अधिष्ठान होने से।' इनके साध्य से युक्त पर्वत आदि पक्ष का बोध कराने वाले वचन को प्रतिज्ञा स्वरूप के विषय में कुछ अन्तर भी पाया जाता है। केवलान्वयि, कहते हैं। जैसे-'पर्वतो वह्निमान्' पर्वत आग वाला है। केवलव्यतिरेकि और अन्वयव्यतिरेकि के भेद से भी अनुमान के तीन (2) हेतु-पञ्चम्यन्तं लिङ्गप्रतिपादकं वचनं हेतुःपञ्चम्यन्त भेद किए जाते हैं / अन्नम्भट्ट ने इसे हेतु का विभाजन स्वीकार किया ' ' लिङ्ग के प्रतिपादक वचन को हेतु कहते हैं / जैसे-'धूमात्' या 'धूमहै, अनुमान का नहीं। इसका प्रतिपादन आगे करेंगे। वत्त्वात्' (धूम वाला होने से)। प्रश्न-कुछ स्थानों पर धूम और आग का साहचर्य देखकर (3) उदाहरण-व्याप्तिप्रतिपादकं वचनमुदाहरणम् = व्याप्ति कालिकसम्बन्धावच्छिन्न व्याप्ति कैसे बन सकती है ? समस्त का प्रतिपादन करने वाले वचन को उदाहरण कहते हैं। जैसे-'यो धम एवं आग वाले स्थलों को हम देख नहीं सकते हैं फिर अनुमान यो धूमवान् स स वह्निमान्, यथा-महानसः (जो जो धूमवाला है कैसे होगा? वह वह आगवाला है, जैसे-रसोईघर ) / ___ उत्तर—यह सच है कि हम त्रैकालिक धूम और आग के सम्बन्धों (4) उपनय -व्याप्तिविशिष्टहतोः पक्षधर्मताप्रतिपादक को नहीं जान सकते हैं परन्तु सामान्यलक्षण नामक अलौकिक वचनमुपनयः- व्याप्ति की विशेषता से विशिष्ट धुमादि हेतु का सन्निकर्ष से व्याप्तिज्ञान हो जाता है। पर्वतादि पक्ष में रहने का प्रतिपादक वचन उपनय है। जैसे-'वह्नि[पञ्चावयवाः के ?] प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनानि व्याप्यधूमवानयं पर्वतः' (आग से व्याप्य धूमवाला यह पर्वत है)। पञ्चावयवाः / पर्वतो वह्निमानिति प्रतिज्ञा / धूमवत्वादिति (5) निगमन-हेतुसाध्यवत्तया पक्षप्रतिपादकं वचनं निगम ....नम् -हेतु की साध्यवत्ता के साथ पक्षप्रतिपादक वचन निगमन है। हेतः। यो यो धूमवान् स स वहिमानित्युदाहरणम् / तथा / जैसे-तस्माद्वह्विमान् पर्वतः' ( अतः पर्वत आग वाला है)। चायमित्युपनयः / तस्मात्तथेति निगमनम् / इन पांचों अवयवों के क्रमशः प्रयोजन हैं-(१) पक्षज्ञान, __ अनुवाद-[पञ्चावयव कौन हैं ?] प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, . . (2) लिङ्गज्ञान, (3) व्याप्तिज्ञान, (4) पक्षधर्मताज्ञान और उपनय और निगमन ये पाँच अवयव हैं। 1. 'पर्वत आग वाला है' यह (5) अबाधितत्वादि / प्रतिज्ञा है। 2. 'धूम वाला होने से' यह हेतु है। 3. 'जो जो धूम दर्शन शास्त्र में सभी लोग इन पाँच अवयवों को नहीं मानते हैं। वाला है वह वह आग वाला है' यह उदाहरण है। 4. 'वैसा ही जैसे-मीमांमक प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण इन तीन को ही मानते ( वह्निव्याप्य धूम वाला) यह (पर्वत) है' यह उपनय है। 5. हैं। पाश्चात्य दर्शन में भी तीन ही अवयव माने जाते हैं, परन्तु 'इसीलिए वैसा ( यह पर्वत आग वाला ) है' यह निगमन है। अवयवों के क्रम एवं नामादि के विषय में मीमांसकों से मतभेद है। व्याख्या–परार्थानुमान में जिस पञ्चावयव वाक्य को बतलाया कुछ लोग दो ही अवयव मानते हैं। कुछ दस अवयवों की भी कल्पना गया है उसके ही ये पाँच अवयव हैं। इसकी सामान्य चर्चा अनुमान करते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65