________________ [ तर्क संग्रहा वाला है क्योंकि आगवाला है। यहाँ 'आन्धनसंयोग' उपाधि है क्योंकि धूम वहीं होता है जहां गीले इन्धन का संयोग हो / अयोगोलक आदि में आग तो रहती है परन्तु धूम नहीं रहता है क्योंकि वहाँ आन्धनसंयोग नहीं है। अतः यह वह्निमत्त्व हेतु उपाधियुक्त होने से व्याप्यत्वासिद्ध है। प्रश्न-उपाधि किसे कहते हैं ? उत्तर-'साध्यव्यापकत्वे सति साधनाव्यपकत्वमुपाधिः' जो साध्य का व्यापक और हेतु का अव्यापक होता है वह उपाधि है। साध्य का व्यापक वह हैं-जिसका अभाव साध्य के अधिकरण में नहीं मिलता / साधन ( हेतु ) का अव्यापक वह है जिसका अभाव साधन ( हेतु) के अधिकरण में पाया जाता है। इसे ही पारिभाषिक शब्दावलि में कहा जाता है-साध्यसमानाधिकरणात्यन्ताभावाप्रतियोगित्वां साध्यव्यापकत्वम् / साधनवनिष्ठात्यन्ताभाव-प्रतियोगित्वं साधनाव्यापकत्वम्', जैसे-'पर्वतो धूमवान् वह्नः' (पर्वत धूमवाला है क्योंकि आग है)। यहाँ साध्य है 'धम' और उसका अधिकरण (आश्रय ) है पर्वत, उसमें (पर्वत में ) घटाभाव है, घटाभाव का प्रतियोगि है 'घट' और अप्रतियोगि है 'आर्द्वन्धन-संयोग'। यही है उपाधि का साध्यव्यापकत्व। इसी प्रकार यहाँ साधन ( हेतु ) है 'आग' उसका अधिकरण है 'अयोगोलक' (संतप्त लौहपिण्ड), उसमें ( अयोगोलक में ) रहने वाला अभाव है 'अन्धनसंयोगाभाव' और उस अभाव का प्रतियोगी है 'आर्दैन्धनसंयोग'। यही है उपाधि का साधनाव्यापकत्व। इस प्रकार जहाँ 'धूम है वहाँ आईन्धनसंयोग है, अतः आद्रन्धन-संयोग साध्य धूम का व्यापक है। जहाँ साधन आग है वहाँ आर्टेन्धनसंयोग नियत नहीं है, अतः अयोगोलकस्थ आग में आर्द्वन्धनसंयोग के न रहने से साधनाव्यापकत्व है। इस उपाधि के तीन भेद किए जाते हैं-(१) केवल साध्यव्यापक (जो साध्य के साथ सदा रहती,) है (2) पक्षधर्मावच्छिन्न हेत्वाभासा: ] [ 97 साध्यव्यापक ( जो पक्षधर्मावच्छिन्न साध्य के साथ रहती है और (3) साधनावच्छिन्नसाध्यव्यापक ( जो साधनावच्छिन्न साध्य के साथ रहती है)। इनके क्रमशः उदाहरण हैं-(१) 'पर्वतो धूमवान् वह्न' में 'आर्द्वन्धनसंयोग' उपाधि है। क्रत्वन्तर्वतिनी हिंसा अधर्मजनिका, हिंसात्वात्' ( यज्ञ के भीतर होने वाली हिंसा अधर्म को पैदा करने वाली है, हिंसात्व होने से ) यहाँ निषिद्धत्व' उपाधि है। (2) 'वायुः प्रत्यक्षः, प्रत्यक्षस्पर्शाश्रयत्वात्' ( वायु प्रत्यक्ष है, प्रत्यक्ष स्पर्श का आश्रय होने से)। यहाँ 'उद्भूतरूपवत्त्व' उपाधि है। (3) 'ध्वंसो विनाशी जन्यत्वात्' (ध्वंस विनाशी है, जन्य होने से)। | ' यहाँ 'भावत्व' उपाधि है। गर्भस्थो मित्रातनयः श्यामः, मित्रातन यत्वात्' ( गर्भस्थ मिश्रा का पुत्र काला है, मित्रा का पुत्र होने से)। यहाँ 'शाकपाक-जन्यत्व' उपाधि है। दीपिका टीका में चार प्रकार की उपाधियाँ हैं। चतुर्थ का नाम है-उदासीनधर्मावच्छिन्नसाध्यव्यापक, जैसे-'प्रागभावो विनाशी प्रमेयत्वात्। यहाँ जन्यत्वावच्छिन्नानित्यत्व की 'भावत्व' उपाधि है। जन्यत्व न साधन है और न पक्षधर्म, अपितु एक उदासीन धर्म है। [बाधितस्य किं लक्षणम् ? ] यस्य साध्याभावः प्रमाणा. न्तरेण पक्षे निश्चितः स बाधितः। यथा वह्निरनुष्णो द्रव्यत्वा दिति / अत्रानुष्णत्वं साध्यं तदभाव उष्णत्वं स्पार्शनप्रत्यक्षेण गृह्यत इति बाधितत्वम् / अनुवाद--[ बाधित का क्या लक्षण है ?] जिसके ( जिस हेतु के ) साध्य का अभाव प्रमाणान्तर से पक्ष में निश्चित हो वह ( हेतु) बाधित है। जैसे-आग शीतल है, द्रव्यत्व होने के कारण। यहाँ साध्य है शीतलता (अनुष्णत्व) और उसका अभाव जो उष्णत्व है, वह स्पार्शन प्रत्यक्ष से सिद्ध है, अतः ( यह द्रव्यत्व हेतु) बाधित है। व्याख्या---जहाँ अनुमान प्रमाण से भिन्न किसी अन्य बलवत्तर प्रत्यक्षादि प्रमाण से साध्याभाव का निश्चय हो जाये वहाँ बाधित