Book Title: Tark Sangraha
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Siddha Saraswati Prakashan

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Page 38
________________ सन्निकर्षोऽनुमानप्रमाणञ्च ] 70 ] [ तर्कसंग्रहः घटाभाव स्वरूप संबन्ध (संयोगादि वृत्तिनियामक सम्बन्धों से भिन्न सम्बन्ध ) से रहता है। जब हम घटाभाव का प्रत्यक्ष करते हैं तो वाक्य-प्रयोग के भेद से कभी घटाभाव विशेषण होता है और कभी विशेष्य। इसी भेद के कारण इस सम्बन्ध के दो भेद संभव हैं। जैसे--(१) विशेषणता सन्निकर्ष-जिसमें अभाव को विशेषण बनाया जाए। जैसे—'घटाभाववत् भूतलम्' घटाभाव वाला भूतल / है / यहाँ भूतल है विशेष्य और घटाभाव है विशेषण / अतः यहाँ चक्षुसंयुक्तभूतल में घटाभाव विशेषणतासन्निकर्ष से ज्ञात हुआ। (2) विशेष्यता सन्निकर्ष-जिसमें अभाव को विशेष्य बनाया जाए। सप्तम्यन्त पद विशेषण माना जाता है। जैसे-'इह भूतले घटो नास्ति' इस भूतल में घट नहीं है। यहाँ सप्तम्यन्त भूतल विशेषण है और अभाव विशेष्य / अतः यहाँ चक्षुसंयुक्त-भूतलरूप विशेषण में घटाभाव विशेष्यता सन्निकर्ष से ज्ञात हआ। नैयायिक अभाव की तरह 'समवाय' पदार्थ का भी प्रत्यक्ष मानते हैं परन्तु वैशेषिक समवाय का प्रत्यक्ष नहीं मानते हैं। अन्नम्भट्ट ने केवल अभाव का प्रत्यक्ष यहाँ बतलाया है। यह विशेष्य-विशेषणता सम्बन्ध कई प्रकार का है। विशेष के लिए देखें कारिकावली 62 पर न्यायसिद्धान्तमुक्तावली। प्रश्न-जाति, समवाय और अभाव के प्रत्यक्ष में इन्द्रियों का नियामकत्व क्या है ? उत्तर-येनेन्द्रियेण यद्गृह्यते तेनेन्द्रियेण तद्गतं सामान्यं तत्समवायस्तदभावश्च गृह्यते' अर्थात् जिस इन्द्रिय से जिप पदार्थ का ग्रहण होता है उसी इन्द्रिय से उसकी जाति, समवाय और अभाव का भी ग्रहण होता है। [प्रत्यक्षप्रमाणस्य निष्कृष्टं लक्षणं किम् ? ] एवं सन्निकर्षषटकजन्यं दानं प्रत्यक्षं, तत्करणमिन्द्रियं, तस्मादिन्द्रियं प्रत्यक्षप्रमाणमिति सिद्धम् / [इति प्रत्यक्षपरिच्छेदः ] अनुवाद-इस प्रकार छ: प्रकार के सन्निकर्ष से उत्पन्न ज्ञान को प्रत्यक्ष [प्रमा ] कहते हैं, उसका करण इन्द्रिय है, अतः इन्द्रिय ही प्रत्यक्ष प्रमाण है, यह सिद्ध होता है। [प्रत्यक्ष-परिच्छेद समाप्त ] (ख) अथाऽनुमानप्रमाणपरिच्छेदः [ अनुमानस्य किं लक्षणम् ? ] अनु मितिकरणमनुमानम् / [अनुमितिः का ? ] परामर्शजन्यं ज्ञानमनुमितिः / [ परामर्शस्य कि स्वरूपम् ? ] व्याप्तिविशिष्टपक्षधर्मताज्ञानं परामर्शः। यथा 'वहिव्याप्यधूमवानयं पर्वत' इति ज्ञान परामर्शः। तज्जन्यं पर्वतो वह्निमानिति ज्ञानमनुमितिः। [व्याप्तिः का? ] 'यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्राग्निः' इति साहचर्यनियमो व्याप्तिः / [ पक्षधर्मतायाः किं लक्षणम् ? ] व्याप्यस्य पर्वतादिवृत्तित्वं पक्षधर्मता। ___अनुवाद-[ अनुमान का क्या लक्षण है ? 1 अनुमिति का करण अनुमान है। [ अनुमिति क्या है? परामर्श से उत्पन्न ज्ञान अनुमिति है। [ परामर्श का क्या स्वरूप है? ] व्याप्ति से विशिष्ट (धूम-हेतु ) का पक्षधर्मता-ज्ञान ( पक्ष-पर्वत में रहने का ज्ञान परामर्श है। जैसे-'यह पर्वत वह्निव्याप्य [ वह्निब्याप्तिविशिष्ट ] धूमवाला है' यह ज्ञान परामर्श है। इस परामर्श से उत्पन्न होने वाला 'पर्वत आग वाला है' यह ज्ञान अनुमिति है। [व्याप्ति क्या है? ] 'जहाँ जहाँ धूम है वहाँ वहाँ आग है' इस साहचर्य-नियम ( समान अधिकरण में रहना) को व्याप्ति कहते हैं। [ पक्षधर्मता का क्या लक्षण है ? ] व्याप्य ( व्याप्तिविशिष्ट धूम आदि हेतु) का पर्वत ( पक्ष) आदि में रहना पक्षधर्मता है।

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