Book Title: Suttagame 01
Author(s): Fulchand Maharaj
Publisher: Sutragam Prakashan Samiti

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Page 11
________________ (नं १५) ता. २०-९-५१ श्रीमान् वावू रामलालजी साहव ! जय जिनेंद्र ! आपका इरसाल करदह श्री आचारांग सूत्र तथा सूत्रकृताङ्ग सूत्र मोसूल हुए। मुलाहिजा श्री १००८ श्रीवहुसूत्री पंडितरत्त श्रीमुनि नरपतरायजी महाराजने अत्यन्त प्रसन्नता प्रगट की। नीज़ मुनि श्री फूलचंद्रजीके इस प्रयासकी अति प्रशंसा करते हैं और फर्माते है कि यह कार्य जो उन्होने आरंभ किया है, भगवान् उनको सफलता दे ।। संघ सेवक मदनलाल जैन फर्स-बंसीलाल बनारसीदास जैन होशियारपुर E. P. (नं. १६) मेवाड़भूपण पूज्य श्री १००८ श्रीमोतीलालजी महाराज फर्माते है कि "आपकी तरफसे 'सुत्तागो' सूयगडे नामकी किताब मिली । पूज्यश्रीके नज़र (भेंट)करदी गई । पूज्यश्रीने फर्माया है कि पुस्तक बड़ी ही सराहनीय है। आपने बड़े परिश्रमके साथ आगमोद्धार करना आरंभ किया है। आपको हार्दिक धन्यवाद है।” कालूराम हरकलाल जैन कपासन (मेवाड़) (नं. १७) "आपका भिजवाया हुआ (ठाणांग-समवायांग-मूल सूत्र दो प्रतिऍ) वुक-पोष्ट लाला परसराम जैन खत्री द्वारा हमें प्राप्त हुआ है । एतदर्थ सुमहान धन्यवाद ! ये महान् अनमोल रत्न भिजवाकर हमे कृतार्थ किया है और भविष्यके लिए आशा करते हैं कि इसी प्रकार अन्य अनमोल रत्न भी भिजवाकर अनुगृहीत करते रहेंगे । पुस्तककी छपाई-शुद्धता-सुंदरता-लघुता-आकार-प्रकार सब कुछ वैसा ही है जैसा मै चाहता था, मानो मेरे विचारोंको समझकर ही आपने प्रकाशित करानेका प्रयत्न किया हो । यह संस्करण स्वाध्यायपरायण लघुविहारी मुनिराजोंके लिए परमोपयोगी है।" रोपड़ १-९-१९५२ ६ भवदीय मुनि फूलचंद्र (श्रमण) (नं. १८) "श्रद्धेय धर्मोपदेष्टाजी जो आगमोंका संशोधित मूलपाठ प्रकाशित करवा रहे है इसकी परमावश्यकता थी, इस दिशाकी ओर बहुत कम विद्वान

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