Book Title: Suttagame 01 Author(s): Fulchand Maharaj Publisher: Sutragam Prakashan Samiti View full book textPage 9
________________ है, अतः स्वाध्याय प्रेमिओंके लिए विशेप उपयोगी है । संपादक शतशः धन्यवादके पात्र हैं, क्योंकि सुत्तागम प्रकाशनरूप जिनवाणीकी अनथक रूपसे आप उपासना कर रहे हैं । मुझे यह भी आशा है कि आगे इसी प्रकार निर्विघ्नतया सेवा करते रहेंगे।" मुनि प्रेमचंद, मानसा (E. P.) (नं. १२) "श्रीयुत पंडितरत्न, सुत्तागम संपादक, जैनधर्मोपदेष्टा, 'पुष्फभिक्खु द्वारा संपादित ठाणांग सूत्र देखा, जिसमे पाठशुद्धि, भारमें हलका और मुंदर छपाई आदिका ध्यान संपादकका खूब रहा है। इस नई शैलीके प्रकाशनको देखकर प्रत्येक व्यक्ति यह खुले दिलसे कह सकता है कि गागरमें सागरकी उक्ति साफ चरितार्थ है । मुझे पूरा संतोप तव ही होगा जब पूर्ण आगम बत्तीसी सुत्तागमरूपेण प्रकाशित होगी। संपादक और सहायक शतशः धन्यवादाह हैं।" निवेदक मुनि प्रेमचंद मानसा (E. P.) __ (नं. १३) श्रीमान् पूज्यवर जैनधर्मोपदेष्टा वीरशासन प्रभाकर विद्यावारिधि, धर्मनायक, पुप्फभिक्खू सादर स्नेहसुधासिक्त अनेक वंदन | और ऑग्लभापा विशारद सुमित्त भिक्खूको सुखशांति पृच्छा । आपश्री का सुत्तागमे सूत्रोके मूलपाठका संपादनका सुंदर कार्य जैन समाज पर, विशेषकर मुनि और साध्वीवर्ग पर महान उपकारी है । आपने समाजके लिए यह अपूर्व अवसर दिया है। आपका यह मंगलकार्य महान स्तुत्य है। मेरी चिरकालीन अभिलाषा साकार हो उठी। क्योंकि मेरी यह प्रवल इच्छा थी कि जिस प्रकार चार वेद हैं इसी प्रकार हमारे ३२ सूत्रोंका चार भागोंमें प्रकाशन हो । पहला मूळपाठके रूपमें, दूसरा शब्दार्थके रूपमें, तीसरा भावार्थके रूपमे और चौथा संस्कृतच्छाया तथा नई टीकाओंके रूपमें । मूलपाठ सुंदर अक्षरोंमे पुस्तकाकार हो । जैसे कुरान वाईबल ग्रंथसाहब आदि पाए जाते है । इसके उपरांत अंग्रेजी, जापानी, चीनी और फ्रेच आदि पाश्चात्यभापाओंमें भी अनुवाद हो । आपने तो मेरी सैकड़ों मीलकी दूर रही भावनाको जानकर यह मंगलकार्य वंबई नगरमे रह कर आरंभ किया है, मुझे तो ठीक यही भास हो उठा है। ठीक भी है क्योंकि मनको मनसे राहत होती है । हे ज्योतिर्धर! वैसे तो आपके जीवनका प्रत्येक अमूल्य क्षण प्राणीमात्रके हित और जैनसमाजके उत्थानमें व्यतीत हुआ है । आपने भगवान् ज्ञातपुत्र महावीर प्रभुकी पविन वाणीको भारतवर्षके कोने कोनेमें पहुंचाकर सभ्य जनसमाज को सुनाया है। अपनी मधुर और ओजस्वी वाणी द्वारा पत्थर दिलोंको दयाकेPage Navigation
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