Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 4 Author(s): Nemichand Patni Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ ५१. ५२. ५३. ५४. ५५. ५६. ५७. ५८. ५९. ६०. ६१. ६२. ६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. ७१. ७२. ज्ञेयस्वभाव ज्ञेय तो पर है, उनकी यथार्थ प्रतीति क्यों? ज्ञेयतत्त्व का स्वरूप अरहंत भगवान को परज्ञेयों का ज्ञान किसप्रकार वर्तता है ? ज्ञेयतत्त्व का स्वरूप क्या है ? आत्मा ही ज्ञानतत्त्व के साथ ज्ञेयतत्त्व कैसे हो सकता है ? ज्ञेयतत्त्व क्या है ? आचार्य कुन्दकुन्द के तीन ग्रन्थों की कथन शैली १४० १४१ १४१ १४४ १४५ १४६ १५४ असमानजातीय द्रव्यपर्याय को मुख्य करने का कारण क्या ? १६१ ज्ञानतत्त्व की भिन्नता के प्रकार १६४ ज्ञान का अन्य द्रव्यों से क्या संबंध है ? ज्ञाता ज्ञेय संबंध में भी राग की उत्पत्ति क्यों ? ज्ञेय निरपेक्ष ज्ञान ही असीमित हो सकता है। पर्याय को जाने बिना पदार्थ का ज्ञान संभव कैसे होगा ? पर्यायरहित द्रव्य ज्ञेय कैसे बनेगा ? द्रव्यदृष्टिवंत का विषय अभेदपदार्थ एवं पर्यायदृष्टिवंत का विषय पर्याय होता है स्वज्ञेय को कैसे जाना जावे ? आत्मा स्व को ही जानता है लेकिन मानता नहीं परलक्ष्यी ज्ञान ज्ञेय के साथ संबंध क्यों जोड़ता है ? परलक्ष्यी ज्ञान से आत्मदर्शन असंभव क्यों ? इन्द्रियज्ञान हेय क्यों ? इन्द्रियज्ञान को स्वलक्ष्यी कैसे किया जावे ? समापन Jain Education International *** For Private & Personal Use Only १६४ १६६ १६८ १७० १७१ १७३ १७५ १७६ १८१ १८१ १८२ १८३ १८४ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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