Book Title: Sudarshan Charitam
Author(s): Vidyanandi, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना प्रकार इस काव्यका रचनाकाल हरिषेण कृत कथाकोशके पश्चात् व श्रीचन्द्र कृत कथाकोशके लगभग २५-३० वर्ष ही पूर्व सिद्ध होता है। रामचन्द्र मुमुक्षु कृत पुण्यास्रव कथाकोशमें पंच-नमस्कार मन्त्रकी आराधनाका फल प्रकट करनेवाली आठ कथाएँ हैं जिनमें सुदर्शन सेठके अतिरिक्त सुग्रीव बैल, बन्दर, विन्ध्यश्री, अर्धदग्ध पुरुष, सर्प-सर्पिणी, कीचड़में फंसी हस्तिनी और दृढसूर्य चोरके कथानक भी है। उक्त रचनाओंके पश्चात् संस्कृत में सुदर्शन विषयक एक पूर्ण चरित ग्रन्थ प्रस्तुत रचना है, जिसके रचनाकालके सम्बन्धमें आगे लिखा जाता है । ग्रन्थकार व रचनाकाल प्रस्तुत संस्कृत सुदर्शन-चरितके कर्त्ताने अपना नाम-निर्देश तथा गुरु-परम्पराका कुछ परिचय अपनी रचनाके आदिमें, प्रत्येक अधिकारको अन्तिम पुष्पिकामें तथा अन्तिम प्रशस्तिमें दिया है । आदिमें समस्त तीर्थंकरों, सिद्धों, सरस्वती, जिनभारती व गौतम आदि गणधरोंकी वन्दना करने के पश्चात् उन्होंने कुन्दकुन्द, उमास्वाति, समन्तभद्र, पात्रकेसरी, अकलंक, जिनसेन, रत्नको ति और गुणभद्रका स्मरण किया है, और तत्पश्चात् भट्टारक प्रभाचन्द्र और सूरिवर देवेन्द्रकीतिको क्रमशः नमन करके कहा है कि ये जो दीक्षा रूपी लक्ष्मीका प्रसाद देनेवाले मेरे विशेष रूपसे गुरु है, उनका सुसेवक में विद्यानन्दी भक्ति सहित वन्दन करता हूँ। ( १, ३१ ) इसके आगे उन्होंने आशाधर सूरिका भी स्मरण किया है, तथा प्रत्येक पुषिकामें प्रस्तुत कृतिको मुमुक्षु-विद्यानन्दि-बिरचित कहा है। ग्रन्थके अन्तिम पद्योंमें ग्रन्थकारको गुरु परम्पराका और भी स्पष्ट व विस्तृत वर्णन पाया जाता है। वहां कहा गया है कि मूलसंघ, भारती गच्छ, बलात्कार गण व कुन्दकुन्द मुनीन्द्रके वंशमें महामुनीन्द्र प्रभाचन्द्र हुए। उनके पट्टपर मुनि पद्मनन्दो भट्टारक और उनके पट्टपर देवेन्द्रकीर्ति मुनि चक्रवर्ती हुए, जिनके चरण-कमलोंकी भक्तिसे युक्त विद्यानन्दीने इस चरित्रकी रचना की। विद्यानन्दीके पट्टपर मल्लिभूषण गुरु हुए तथा श्रुतसागरसूरि सिंहनन्दी भी गुरु हुए। गुरुके उपदेशोंसे इस शुभचरित्रको नेमिदत्तवतीने भक्तिसे भावना को। ( १२, ४७, ५१ ) इस परसे इस सुदर्शन चरितके कर्ता विद्यानन्दीकी गुरु-परम्परा निम्न प्रकार पायी जाती है For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 180