Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 342
________________ दावणगिरिमां प्रतिष्ठा - महोत्सव. ओनी मोटी मोटी दुकानो छे. सोळ वरस पहेलां आ व्यापारी समाजना अग्रेसर शाह रतनाजी लखमाजी, भीखाजी कपूरचंद, अचलाजी जगताजी, तथा जेताजी नथमलजी विगेरे महाशयोने अहीं एक जिनमंदिर बंधाववानी इच्छा थई, तेथी आ जैन लत्तामां ज एक सुंदर जग्या पसंद करी, श्री संघ तरफथी खरीदी लीधी. तत्काल देरासरजी बंधाववानुं काम शरु करी दीधुं वचमां घणां विघ्नो आव्यां; परंतु शासनदेवनी कृपाथी पोताने माथे लीधेलुं आ शुभ कामं दावणगिरिना धैर्यशील श्रीसंघे संपूर्ण कर्यु. आ भव्य देरासरजी बंधाववामां पांत्रीश हजार रूपियानो खर्च थयो. २९ देरासरजीमां पधराववा माटे मूळनायक श्री सुपार्श्व - नाथजी, श्री गौडीजी पार्श्वनाथ, श्री चन्द्रप्रभ स्वामी अने श्री सुपार्श्वनाथ; ए प्रमाणे चार भव्य प्रतिमाजी मारवाडथी मळी गई. प्रतिमाजी पधराववा माटे सिंहासन बनाववा जोधपुर राज्यना मकराणा नामना स्थळेथी सफेद संगमरमर पत्थर मंगाव्यो, अने सिंहासननी रचना माटे मारवा थी सोमपरा गंगारामजी नामना कुशल कारीगरने बोलावी अनुपम सिंहासन तैयार कराव्युं. आ मनोहर देरासरजीथी दावणगिरिनी शोभामां ओर वधारो थयो . दावणगिरि प्रतिष्ठा महोत्सव. मुनिराज श्री भावविजयजी दावणगिरिमां प्रवेश करी देरासरजीमां दर्शन करवा पधार्या, आवुं भव्य देरासर अने

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