Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah
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मैसुरथी दावणगिरि तरफ विहार.
२७
श्री भावविजयजी उपर ठरी. तुरत दावणगिरिना श्रीसंघ तरफथी मुख्य-मुख्य आगेवानो मैसुर पहोंच्या, तेमणे मुनिराजने दावणगिरि पधारवा अने प्रतिष्ठानुं कार्य पार उतारवा आग्रहभरी विनति करी. ज्ञानी मुनिराजे लाभy कारण जाणी चातुर्मास पूर्ण थतां मैसुरथी दावणगिरि तरफ विहार कर्यो. रस्तामां बाहुबलि विगेरे गाम थई अलसीखेरा पधार्या. अहीं जैन भाईओमां घणा समयथी परस्पर कुसंप हतो, मुनिराजे पोतानी प्रभावशाली देशनाथी ए कुसंप दूर कराव्यो. अहींना जैनो सारी संख्यामां अने साधन-संपन्न होवा छतां देरासरजी नथी, तेथी मुनिराजे देरासरजी माटे उपदेश आप्यो, अलसीखेराना भाविक श्री संघने आ महापुरुषनो उपदेश रुच्यो, अने नवीन जिनचैत्यनो आरंभ करी दीधो.
त्यांथी मुनिराजे विहार को हमेशां पंदरथी वीश माइल विहार करता हता, अने गामडाना लोकोने पण पोतानी अमोघ देशनानो लाभ देता हता. रस्तामां बाणावार, कडुर, बीलुर, हजामपुर, हेलरखेडा, चिकजाजुर विगेरे गामोमां ज्यां ज्यां जैनोनी संख्या अधिक हती त्यां त्यां मुनिराजनुं बेंड विगेरेथी स्वागत थतुं हतुं. रस्तामां आवता शहरो अने गामडाओमां ज्यां ज्यां जैनोमां कुसंप हतो, ते मुनिराजे पोताना वैराग्यमय उपदेशथी दूर कराव्यो. वळी केटलेक ठेकाणे धर्मादा-रकमोनो गोटाळो घणा वखतथी चाल्यो आवतो हतो, ते परिश्रमपूर्वक दरेकने समजावी दूर कराव्यो,
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