Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 388
________________ गुरुदेव तरफ मुनिवर्यनी अनन्य भक्ति. ७१ अने सत्कार-पूर्वक पूना शहेरमां भवानी पेंठने उपाश्रये लई गया. पूनाना श्री संघनी चतुर्मास माटे विनति, गुरुदेव तरफथी विहार करवानी आज्ञा. अहीं पधारी मुनिवर्ये व्याख्यान आप्यु, अने तेमनी अमृततुल्य देशनाथी आकर्षाइ श्री संघे चतुर्मास करवानी विनति करी. मुनिवर्ये कयु के-" श्री संघनी विनति हुँ शिरोमान्य मानतो आव्यो छु. परंतु आ वर्षनुं चतुर्मास अहीं थवं मुश्केल छे, कारण के, मारा गुरुदेव आचार्यजी महाराज श्री विजयेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज मुरबाडमा बिराजे छे, अमारे गुरुदेवनी भेगा थवा उत्कट भावना छे. वळी गुरु महाराजनी पण आज्ञा छे के, अमारे विना विलंबे तेमनी साथे थq. छतां गुरु महाराज अहीं चतुर्मास करवानुं फरमावे, तो अमारे साधुओए तो कोई पण स्थळे धार्मिक उन्नति थाय त्यां चतुर्मास करवानुं छे. परंतु गुरुदेवनी आज्ञा विहार करवानी होवाथी चोमासु रोकाई शकाय तेम नथी." आ प्रमाणे गुरुमहाराजनी सेवा अने दर्शन माटे अभिलाषा राखता मुनिवर्ये विहार करवानी तत्परता बतावी. कयुं छे के" धन्नो सो जीअलोए, गुरवो निवसन्ति जस्स हिअयम्मि। धन्नाण वि सो धन्नो, गुरूण हियए वसइ जो उ ॥ १ ॥”

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