Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 391
________________ ७४ मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र. जन्मभूमिमां जिनमन्दिर. मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनी जन्म भूमि, तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजयनी शीतल - छायामां वसेला अने पालीताणाथी पांच गाउ दूर आवेला हाथसणी गाममां छे. अत्रे जग्याना संकोचने लीधे उपाश्रयनी मेडी उपर साधारण स्थितिमां घर - देरासरजी छे, जेमां बारमा तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामीनां चमत्कारी प्रतिमाजी बिराजे छे. मुनिवर्य श्रीभाव विजयजी महाराजने विचार उद्भव्यो के, हाथसणीमां श्रावकोनां घर ठीक-ठीक होवाथी मजबूत बांध - कामवाळु खास अलग जग्यामां देरासरजी कोई पुण्यशाळी तरफथी बंधावाय तो घणा लाभनुं कारण छे. तेथी तेमणे प्रसंगोपात व्याख्यानमां नविन जिन - मन्दिर बंधाववाथी केटलो लाभ थाय ?, ए धन्य अवसर केटला पुण्यनी राशि होय तो मळे ? विगेरे जिन - मंदिर संबंधी विषय दाखला दलीलो अने असरकारक शैलीथी एवो चर्थ्यो, के जेथी व्याख्यानमां आवेला दरेक श्रोता उपर तेनी उंडी असर थई. मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजे पोतानी जन्म भूमि हाथसणीमां जिनालय बंधाववानी आवश्यकता जणावी, ते सांभळी तुरतज मारवाडमां गाम पादरडीवाळा शा सेसमलजी हंसाजीए पोताने खर्चे हाथसणीमां जिन-मंदिर बंधावी आपवानो पोतानो निर्णय जाहेर कर्यो. तेओ पोते तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजयनी यात्रा करवा

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