Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah
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राणीविन्नुरमां शान्ति-स्नात्र, हुबलीमां चतुर्मास. ३३
सना हशे अने ज्ञानी महाराजे दीढुं हशे त्यां चतुर्मास थशे, अत्यारे तो विहारनो बखत छे. "
अहींथी मुनिराजे विहार कर्यो. राणीचिन्नुर पधारतां त्यांना श्रीसंघे भव्य स्वागत कयुं मुनिवर्यनी वैराग्यमय देशना सांभळी राणीविन्नुरना श्रीसंघे पोताना शहेरमां शांतिस्नात्र महोत्सव करवानी पोतानी इच्छा प्रगट करी. मुनिराजे आ शुभ कार्य माटे अनुमोदना करी. परिपूर्ण विधि साथे शांतिस्नात्र थयुं. जैन - जैनेतर पुष्कळ माणसोनी मेदनी बच्चे aणा ज ठाठमाठथी वरघोडो नीकल्यो, अने जैनशासननी
प्रभावना थइ.
अहींथी ग्रामानुग्राम विहार करता मुनिवर्य हुबली पधार्या. हुबलीना श्रीसंघे भव्य स्वागत कर्यु. आ महात्मानी वैराग्यमय अमृत-वाणी सांभळी हुबलीना श्रीसंघे चतुर्मास माटे आग्रहभरी विनति करी. चोमासुं बेसवाना दिवस नजीक आवी गया हता, वळी श्रावकभाईओनी भावना उत्कट हती, थी लाभनुं कारण जाणी मुनिराजे विनति स्वीकारी, अने संवत् १९८८ नुं चतुर्मास हुबलीमा करवानुं ठर्यु.
हुबलीना भाविक श्रीसंबे घणा ज आदर-पूर्वक आ महात्मानी सेवानो लाभ उठान्यो, सवारना व्यापार - रोज - गार बंध करी व्याख्यान - वागीनो लाभ लीधो, व्याख्यान
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