Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 365
________________ ५० मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र. भाववाही चित्रो, सुन्दर-सुन्दर मुद्रालेखो, वीजळी लाइट, हांडीओ, झुम्मरो, अने मोटा-मोटा अरीसाओथी अद्भुत रीते शणगार्यो हतो. अंदरना भागमां त्रण हजार माणसो आरामथी वेसी शके एवो ए आलीशान सामियानो हतो. प्रतिष्ठा - महोत्सव समये देरासरजी तथा मंडपमां रात्रिना पूर बहारथी रोशनी करवामां आवी हती, अने तेथी चारे तरफ झगमगाट थइ रह्यो हतो. शहेरमां पण दीपावली करवामां आवी हती. देरासरजीमां प्रतिदिवस परमात्मानी प्रतिमाजीने नवी - नवी आंगी करवामां आवती हती. गुलाव, जाई, जुई, चंपो, चमेली अने केवडो विगेरे सुगंधी पुष्पोना हार अने रचनाथी देरासरजीनुं गर्भगृह सुगंधथी बहेकी उठ्युं हतुं. अत्तर, कस्तूरी, अगर विगेरे बहुमूल्य उत्तम वस्तुओनी सुगंध देरासरजीनी आसपास प्रसरी रही हती. हारमोनियम, तबला, नोबत, नगारा, नागस्वरम् विगेरे वाजंत्रोना मीठा-मीठा स्वरो सूर्योदयथी शरु थइ अर्धरात्र पर्यन्त धारवाडनी जनताने उत्साहित करी रह्या हता. प्रतिष्ठा - महोत्सवनो शुभ दिवस आवतांज वेंगलोर, मद्रास, मैसुर, चितोरदुर्ग, राणीविन्नुर, हरीयाल, बेडगी, हवेली, हुबली, गंधक, आदवाणी. रायचूर, सीमोगा, भद्रावती, कडर, बाणावार, बीलुर, हजामपुर, हेलरखेडा, चिकजाजुर, बोरींगपेट, कोल्हापुर, बारसी, पूना, मुंबई, सांगली,

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