Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 374
________________ भाई साकरचंद तथा भाई जीवराजनो दीक्षा महोत्सव. आसो - पालवना वृक्ष नीचे आ बने मुमुक्षुओने शुभ चोघडिये मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजना शुभ हस्ते दीक्षा देवामां आवी, अने सकल संघ समक्ष बन्ने भव्यात्माओने मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजना शिष्य तरीके जाहेर करवामां आव्या. भाई साकरचंदनुं नाम मुनि सत्यविजयजी अने भाई जीवराजनुं नाम मुनि जीवविजयजी राखवामां आव्युं. शुभ भावना उपर आरूढ थला आ बने मुमुक्षुओने रजोहरण ( ओघो ) अर्पण थतां जाणे भवसमुद्री तरवाने उत्तम वहाण प्राप्त थयुं होयनी ! एवी रीते रजोहरण हस्तमां लइ बहुज खुशी थतां सुंदर नृत्य कर्यु ! नजरे जोनारा भाई बहेनो आ अपूर्व दृश्य जोइ तेमनी चडती भावनानी मुक्तकंठे प्रशंसा करवा लाग्या, अने जैन - शासननी जय - घोषणा गाजी रही. भाई साकरचंद उर्फे मुनि सत्यविजयजी महाराजने तेमना भाई मगराजजी तरफथी रजोहरण अर्पण करवामां आव्युं, अने तेमना बनेवी शा. धुराजी उमाजी, गाम- धारवाड, मारवाडमां गाम तखतगढवाळा तरफथी पात्रां विगेरे वहोराववामां आव्या. भाई जीवराज उर्फ मुनि जीवविजयजी महाराजने धारवाडना श्रीसंघ तरफथी रजोहरण अर्पण करवामां आव्युं, अने शा पुनमचंद अमीचंद, गाम- धारवाड, मारवाडमां गाम सेवाडीवाळा तरफथी पात्रां विगेरे अर्पण करवामां आव्युं. दीक्षा थया बाद बन्ने नव-दीक्षितो ने

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