Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 382
________________ बीजापुरमा चतुर्मास निर्णय, वैर गी यतिजी- आगमन अने दीक्षा. ६५ भावना, अने तेमनो दीक्षा-महोत्सव तेमणे नजरे जोयो हतो. वळी मुनिवर्य श्री भावविजयजी महाराजनो प्रभाव, शांत मुद्रा, अने पवित्र चारित्रे तेमना हृदयमां उंडी छाप पाडी हती. तेथी एज वखते तेमने यतिवेषना शिथिलाचार तरफ अरुचि थइ. पोते यतिपणामां धार्मिक ज्ञान सार्क मेळव्युं हतुं, तेथी भिन्न भिन्न कर्म केवी रीते संसारना प्राणीओने नचावी रहेल छे, ए तेओ जाणता ज हता; तेमां उपरनां कारणो मळवाथी तेमने संवेगी दीक्षा अंगीकार करवानी शुभ भावना जागृत थइ. मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजने तेमणे एज वखते पोतानी भावना जणावीने संवेगी दीक्षा आपवा अरज करी, त्यारे ज्ञानी मुनिवर्ये कर्वा के, “ तमारी भावना अनुमोदवा योग्य छ, चारित्र आदरणीय छ, अने तमारा जेवा वैरागीने संवेगी दीक्षा आपवी ए मारी फरज छे. परंतु तमारा गुरुजीनी राजीखुशीथी रजा लीधा पछी संवेगी दीक्षा लेवाय तो वधारे ठीक." आ हकीकत तेमने पण योग्य जणाइ. तुरत तेओ डीसाकेम्प आव्या, अने बहु ज शांतिथी यतिजी श्री भक्तिविजयजीने समजाव्या. सरल स्वभावी यतिजी श्री भक्तिविजयजीए पोताना शिष्यनी उंची भावना जोइ बहुज प्रसन्न-चित्ते रजा आपी. आ प्रमाणे पोताना गुरुजीनी रजा मेळवी तेओ बीजापुर पधार्या, अने पोताने संवेगी-दीक्षा अंगीकार करवानो पोतानो निर्णय श्री संघ समक्ष मुनिवर्य श्री भावविजयजी महाराज पासे व्यक्त कर्यो.

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