Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah
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६८ मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र.
जेमनुं मुख्य कर्तव्य छे, एवा संत पुरुषो कोने वन्दनीय नथी होता ? "
महापुरुषो ज्यां विचरे त्यां धार्मिक उद्योत थाय ज, तेम अहीं पण बन्युं, आ चोमासामां श्रावक भाईओ तथा श्राविका व्हेनोए सामायिक, प्रतिक्रमण, पूजा अने तपस्यादि धार्मिक कार्योंमां विशेष प्रमाणमां भाग लीधो. मुनिवर्याने वन्दन करवा माटे बहार गामथी आवता साधर्मिक भाईओनो आदर-सत्कार बीजापुरमा रहेता भाग्यशाळी शेठ गणपत - चंदजी पदमचंदजी तरफथी पूर्ण भाव-भक्तिथी आखा चतुमसमां करवामां आव्यो हतो.
मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजे पोताना ज्ञानध्यान उपरांत त्रणे शिष्योने भणाववानुं चालु कर्यु. वळी तेमने संस्कृतनुं उंचुं ज्ञान आपवा माटे बीजापुरना भाविक श्री संघना खर्चे तेमनी विनतिथी व्याकरण - तीर्थ बनेला एक जैन पंडितने बोलाववामां आव्या, अने त्रणे शिष्य - रत्न रात्रि - दिवस पठन-पाठनमां दत्त - चित्त रही पोतानो अभ्यास आगळ वधारवा लाग्या.
बीजापुरमा प्लेगनो उपद्रव, शान्तिस्नात्रना प्रभावथी थयेली प्लेगनी शान्ति.
चतुर्मास पूर्ण थवाने थोडा दिवस अवशेष रह्या,
तेवामां
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