Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 384
________________ बीजापुरमा त्रणे शिष्योने अपायेली वडी दीक्षा. ६७ जयजी महाराजने करवामां आव्या, अने सौथी नाना मुनिराज श्री सत्यविजयजीने करवामां आव्या. . ___ आ प्रमाणे पोताना त्रण शिष्यरत्नो साथे मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजे संवत् १९८९ नुं चतुर्मास बीजापुरमां कर्यु. हमेशां सवारमा व्याख्यान वांचवानुं शरु कयु. व्याख्यानमां श्री भगवती सूत्र, तथा भावनाधिकारे अभिधान राजेन्द्र कोष अने वर्धमान देशना वांचवामां आवी. निष्पक्षपात अने वैराग्यमय व्याख्यान चालु थतां अन्यमतावलंबीओ पण आकर्षाया, अने श्वेतांबर भाई-व्हेनो उपरांत दिगंबर भाईव्हेनो तथा लिंगायत ब्राह्मण विद्वानो पण व्याख्यानमां नियमसर हाजर रहेवा लाग्या. व्याख्यानमां केटलाक विषयो चर्चाता, ते उपरांत बपोरना पण शंकाओ पूछवा ब्राह्मणो विगेरे आवता. दरेक शंकानां समाधान मुनिवर्य तरफथी खुलासावार थतां होवाथी तेमने आज सुधी जैन धर्म विषे जे भ्रान्ति हती ते दूर थई. खरा वैरागी, परोपकारी अने वन्दनीय जैन साधुओ छे, एवो तेमणे उत्तम अभिप्राय बांध्यो. कयु छ के " वदनं प्रसादसदनं, सदयं हृदयं सुधामुचो वाचः । करणं परोपकरणं, येषां केषां न ते वन्द्याः ? ॥ १॥" " जेमर्नु मुख प्रसन्नतानुं घर छे, जेमनुं हृदय दयालु छे, अमृत झरती जेमनी वाणी छे, अने परोपकार एज

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