Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 355
________________ ४० मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र. ~~~~~~ संसारथी पार उतरवार्नु अद्वितीय साधन छे. तेमणे प्रतिमाजी उपर अडग श्रद्धा थवाथी देरासरजीमां हमेशां प्रतिमाजीने वंदन-पूजन माटे आववानुं शरु करी दीg, अने मुनिवर्यना सदुपदेशथी वैराग्य-भावना जागृत थइ. आवी रीते आ बन्ने बाल ब्रह्मचारी भाग्यशालीओने आ असार संसार उपरथी विरक्त-भाव थवाथी भागवती दीक्षा अंगीकार करवानी शुभ भावना उत्पन्न थइ, अने शांतमूर्ति चारित्रशील मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजने तेओ बन्ने जणाए पोतानी शुभेच्छा जणावी. मुनिवर्ये तेमनी धर्म उपरनी अडग श्रद्धा, अखंड वैराग्य-भावना अने संसार उपर निमोह जोइ उपदेश आप्यो के, “ संसारभीरु भव्यात्माओ ! तमारी उच्च भावना अनुमोदवा योग्य छे. आबालगोपाल समस्त मनुष्यो बलके समस्त जीवो सुखनी इच्छावाळा होय छे. शेठ, शाहुकार, राजा, महाराजा, देव के देवेन्द्र दरेक सुखने माटेज वलखां मारे छे; परंतु वास्तविक सुख के अपूर्व आनंद कोण भोगवे छे ? तेने माटे एक महाशये कयुं छे के " न चेन्द्रस्य सुखं किञ्चिद्, न सुखं चक्रवर्तिनः । सुखमस्ति विरक्तस्य, मुनेरेकान्तवासिनः ॥” " एकान्तमा रहेनारा अने संसारथी विरक्त बनेला मुनिराजने जेवं सुख छ, तेवू सुख देवेन्द्रने के चक्रवर्तीने पण होतुं नथी." इत्यादि मुनिपणाना महत्त्वनी देशनाथी

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