Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 646
________________ ६२६ स्थानास्त्रे गजादिसैन्याधिपतयो देवाः १४, आत्मरक्षकाः-राज्ञामिवाद्गरक्षका देवा मानुष्यं लोकं हव्यमागच्छन्तीति प्रतिसूत्रे संयोजनीयम् १५॥ मनुष्यलोकागमने देवानां यानि त्रीणि कारणानि सन्ति तान्येव देवाभ्युम्यानादीनां कारणानि सूत्रपञ्चकेनाह-'तीहिं' इत्यादि, सुगम, नवरं-अम्युत्तिहन्ति-सिंहासनादुत्तिष्ठन्ति ।१। एवं-पावक्तामिलापेन आसनानि-शक्रादीनां सिंहासनानि चलन्ति ।२। सिंहनादचेलोत्क्षेपौ प्रमोदकायौं कुर्वन्ति ।४। एभिरेव त्रिभिः स्थानः चैत्यक्षाः-देववृक्षविशेषाश्चलन्ति ।५।२० १३॥ किमर्थ भदन्त ! शक्रादिदेवा मनुष्यलोकमागच्छन्ति ? अत्राह-धर्माचार्यतया महोपकारित्वात्सेवाद्यर्थमागच्छन्ति, अशक्यपत्युपकाराश्च भगवन्तो धर्माचार्याः इति सदृष्टान्तं प्रदर्शयन् सूत्रत्रयमाह मूलम्-तिण्हं दुप्पडियारं लसणाउसो!, तं जहा-अम्मापिउणो १, भहिस्स, धम्मायरियस्स । संपाओवि य णं केइपुरिसे अम्मापियरं सयपागसहस्सपागेहि तेल्लेहि अभंगेत्ता सुरभिणा गंधहएणं उव्वहिता तिहि उदगेहिं मजावित्ता सव्वावे परिवदुपपन्नक देव हैं। गजादिसेना के अधिपति जो देव हैं ये अनीकाधिपति देव हैं, राजाओं के अङ्गरक्षकों की तरह जो देव होते हैं वे आत्मरक्षक देव हैं। ये सब भी इन कारणों को लेकर मनुष्यलोक में शीघ्र आते हैं ऐसा कथन प्रत्येक सूत्र में लगाना चाहिये मनुष्यलोक में आने के जो ये कारण प्रकट किये गये हैं वे ही कारण देवाभ्युत्थानादि के भी हैं, यही वात सूत्रकार ने “ तीहिं" इत्यादि पांच सूत्रों द्वारा प्रकट की है ॥ सू०१३ ॥ વારો૫૫નક જે દેવે છે તેમને પરિષદુ૫૫નક દેવે કહે છે. ગાદિ સેનાએના અધિપતિ જે દે છે તેમને અનીકાધિપતિ દેવે કહે છે, જે દે રાજાઓના અંગરક્ષકોની જેમ ઈદ્રોના અંગરક્ષકે સમાન હોય છે, તેમને આત્મરક્ષક દેવે કહે છે. આ બધાં દેવે પૂર્વોક્ત કારણોને લીધે મનુષ્યલોકમાં શીઘ આવે છે, આ પ્રકારનું કથન પ્રત્યેક સૂત્રમાં સમજી લેવું. જે કારણે તેઓ મનુષ્યલેકમાં આવે છે, તે કારણોને લીધે જ તેઓ પોતાના સિંહાસન ५२थी हे छे, 431312 से छे, त्या पात सूत्रधारे " तीहि " त्यादि પાંચ સૂત્રે દ્વારા પ્રકટ કરી છે. જે સૂ. ૧૩ છે

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