Book Title: Sthanang Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 677
________________ सुधा टीका स्था०३ ७० १ सू० १९ योनिस्वरूपनिरूपणम् पंसीपत्तियाणं जोणी पिहज्जणस्स । बंसीपत्तियाए णं जोणिए बहवे पिहजणा गभं वकमंति ॥ सू० १९ ॥ ___ छाया-त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-शीता, उष्णा, शीतोष्णा । एवमेकेन्द्रियाणां विकलेन्द्रियाणां तेजस्कायिकवर्जानां संमूच्छिम पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां संमूछिममनुष्याणां च । त्रिविधा योनिः प्राप्ता, तद्यथा-सचित्ता, अचित्ता, मिश्रका एवसेकेन्द्रियाणां विकलेन्द्रियाणां समूच्छिमपच्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां संमूछिममनुष्याणां च । त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-संवृताविता संत__जीवपर्याय के अधिकार को लेकर अब सूत्रकार योनि के स्वरूप का कथन करते हैं-तिविहा जोणी पण्णता) इत्यादि । सुत्रार्थ-योनि-जीवों का उत्पत्ति स्थान तीन प्रकार की कही गयी है जैसे शीतयोनि, उच्णयोनि, और शीतोष्णयोनि यह योनि तेजस्कायिक वर्ज एकेन्द्रियोंको, विकलेन्द्रियों को, संमृच्छिमपंचेन्द्रियतियचोंको और संमूच्छिममनुष्योंको होती है। इस प्रकार से भी योनि तीन प्रकार की कही गई है-सचित्त, अचित्त और मिश्र यह योनि एकेन्द्रियों को, विकलेन्द्रियों को, संमूच्छिमपंचेन्द्रियतिथंच योनियोंको और संमूच्छिम मनुष्यों को होती है। तथा इस प्रकार से भी योनि तीन प्रकार की कही गई है-संवृत, विवृत, और संवृतविवृत यह योनि देव, नारक, एकेन्द्रिय, गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्य, विकलेन्द्रिय, अगलेज पंचेन्द्रिय मनुष्य और निर्यच । अथवा-कूर्मोन्नत, शावर्त और જીવપર્યાયના અધિકારની અપેક્ષાએ હવે સૂત્રકાર નિના સ્વરૂપનું કથન ४२ छ-" तिविहा जोणी पण्णत्ता" त्या: સૂત્રાર્થ-જીના ઉત્પત્તિ સ્થાનને નિ કહે છે. તે યોનિના ત્રણ પ્રકાર કા छ-(१) शीतयोनि, (२) Bायोनि, सने (3) शीतयोनि. ते४२४ायि સિવાયના એકેન્દ્રિય જીવોને, વિકલેન્દ્રિય જીવોને, સંમૂછિમપંચેન્દ્રિય તિર્યએને અને સંમૂર્ણિમ મનુષ્યોને આ નિ હોય છે. યોનિના નીચે પ્રમાણે a ४२ ५५ ५४ छ-(१) सयित्त, (२) मथित्त मन (3) भिश्र. मा નિને એકેન્દ્રિયમાં, વિકલેન્દ્રિમાં, સંમૂછિમ પંચેન્દ્રિય તિય"ચ એનિ. કેમાં અને સંમૂર્ણિમ મનુષ્યમાં સદ્દભાવ હોય છે. નિના નીચે પ્રમાણે ત્રણ १२ ५Y ५ छ-(१) सक्त, (२; विकृत मन (3) सतविकृत मा योनिना સદભાવ દેવ, નારક, એકેન્દ્રિય, ગર્ભજ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને મનુષ્ય, વિકલેન્દ્રિય, અગર્ભજ પંચેન્દ્રિય મનુષ્ય અને તિર્યંચમાં હોય છે.

Loading...

Page Navigation
1 ... 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706