Book Title: Shubh Sangraha Part 03
Author(s): Bhikshu Akhandanand
Publisher: Sastu Sahityavardhak Karyalay

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Page 407
________________ ભગવાન રામચ’ની પ્રતિજ્ઞા–એકાંકી નાટક " धन्य है वह भूपति, जिसको प्रजासे प्यार है । जो न हो राजा प्रजा का, उसको सौ धिकार है ॥ तुच्छ है सीता-सती, प्रजा - प्रेम के सामने | कह दिया बस आजसे, सीता को छोडा रामने भरत — " हे डे, लात ! आये मे शुधु ? म्यां मे पवित्रतानी भूर्ति, सतीत्वनी भालु, "" દેવી સીતા; અને ક્યાં અયેાધ્યાની ગલીએમાં ભટકનારાં એ કુતરાં ?ઃ— यह शब्द है अपमान के । की, योग्य है सम्मान के ॥ ," " आपकी सुनते नहीं, जानकी माता सभी शुभ - " योग्य है सम्मान के सचमुच ही सीता राम की । पर जो न भायी हो प्रजा को, वह मेरे किस काम की ॥ हो खुशी जिसमें प्रजा की, उसमें सुख है, क्षेम है। मैं हूँ चातक स्वाति-जल, मेरा-प्रजा का प्रेम है ॥ "" ભરત ́ પરંતુ જેમ આપ પ્રજા-પ્રેમનું પાલન કરે છે, તેમ આપે નારી-પ્રેમનું પણ પાલન કરવું જોઇએ— 66 कारण कि नारी - प्रेम से ही, गृहस्थ का कल्याण है । जिस घर में हो नारी दुःखी, वह घर नहीं, श्मशान है ॥ नारी न हो दुनियाँ में तो, दुनियाँ है फिर किस काम की ? है जानकी दुनियाँ में तो, दुनियाँ है सारी राम की ।। " राभ--“ लरत ! भरत !! या मधी भिथ्या अर्था छे. रामे मे निश्श्रय भरत--“ लाघ ! लाई !! मे आप शु उडे। छो?" राम--" भरत ! राम नथी आहेत, सभ्य ही रह्यो छे :( गाय छे. ) " सब दिन होत न एक समान । दुःख सुख जीवन भोग हि मानो, दो दिन की गुजरान ॥ इक दिन राजा हरिश्चंद्र की, संपत्ति मेहमान । इक दिन जाय डोम घर सेवत, अंबर हरत मसान ॥ इक दिन ध्रुव की माता शुचिने, कीन बडा अपमान | इक दिन ध्रुव का दर्शन करने आये श्री भगवान || इक दिन सीता रुदन करती थी, महा विकट उद्यान | इक दिन राम सिया दोऊ मिल, विहरत पुष्प - विमान || प्रकट है पूरव की करनी ही, तज मन सोच अजान । तुलसीदास गुण कहँ लग वरणूं, विधि के अंक प्रमान ॥ " લક્ષ્મણ--(જલદીથી પ્રવેશ કરીને) “દુર્મુખ પાગલ છે. અવશ્ય કાઇ भीषण अव छे." राम--" अव नहि, लक्ष्मणु ! अयोध्यानी अल खेडेवाले उही रही छे. " सक्ष्मणु--" ला ! क्षमा २; शु उही रही छे ?" ૩૧ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat छे, ते मयज छे.” सब दिन० सब दिन० सब दिन० सब दिन० सब दिन० सब दिन० सब दिन० सब दिन० सब दिन० રાયદ્રોહીનુ આ राम--" मेन } सीता रम-सती छे. " लक्ष्मणु--" य-सती छे--सीता यस्ती छे ! आड! या 'म' अक्षरे लये यद्रभानी पूर्ण કળાને રાહુ થને ગ્રસી લીધી. આ ‘અ' અક્ષરે જાણે કાળા નાગનું રૂપ લઇને મારા અંતઃકરને દંશ દીધેા. સૂનાં ઉજજવળ પ્રકાશમય કિરણાથી ખીલેલી કુમુદિની સમાન નિર્માળ, નક્ષત્રसमान पवित्र ने रात्रिधिवस पति नामनी भाषा भयनारी सीता स-सती छे ? ला ! ला !! www.umaragyanbhandar.com

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